Monday 25 November 2013

लकीर हाथों की


मेरे पति देव
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सब हाथ की लकीरों में ढूढ़ते रहे

तुम दिल में हमारे बसे बैठे रहे
इन्तजा है तुमसे हमारी दिल से तुम

हाथों की लकीरों में भी दिखने लगों
जैसे लोग भ्रम में जीना छोड़ दे
और
तुझे लकीरों में देख हाथो की
हमारी किस्मत पर ईष्या करे||....
.सविता मिश्रा

Thursday 21 November 2013

बस दस... :) :)

१--मन टटोलने की यूँ हिमाकत ना किया करो
कही ऐसे करते -दिल ही ना टूट जाये| ..सविता मिश्रा

2--संदेह का लाभ हम खुद ही उन्हें दिला बैठे
अपने ही पाओ पर कुल्हाड़ी चला बैठे| ...सविता

3--जीने की ख्वाइशे किसे थी इस बेरहम दुनिया में
अब तो चाहत हैं किसी दुश्मन को मार कर ही मरे| ..सविता

4--फिरते थे उजाला लिए खरीदार ना मिला कही भी हमें
अँधेरे को बेचने की एक ही आवाज में सब दौड़े आये| ..सविता

5--भ्रम ही हैं देते जीने का एक फलसफा
वर्ना कौन यहाँ जी पाएगा सच्चाई से| .सविता मिश्रा

6--झुकी आँखों को देख गफलत में ना रहो
ये शर्म से नहीं तेरे अदब में झुकी हुई हैं |...सविता मिश्रा

7--सितारों की चमक भी खुद बा खुद फीकी पड़ जाती हैं
घने अँधेरे से जब मिलने को धरती पर आती हैं| ...सविता मिश्रा

8--मौत तो हर पल चुपचाप बैठी हैं अपने ही आगोश में
देख रही तमाशा कि छटपटा रहें हम जिन्दगी की चाह में| ...सविता मिश्रा

9--जाती हुई सांसो के लौटने का करते हैं इन्तजार
मौत रहती हैं इस चाह में कि टूटे सांसो से करार| ..सविता मिश्रा

10--आसमान से धरा पर यूँ गिरा दिया
जैसे कभी हम तुम्हारे कुछ भी ना थे| ...सविता

Thursday 7 November 2013

++ओह क्या क्या समझ बैठे ++

मानी थे लोग अभिमानी समझ बैठे
क्रोधी ना थे लोग क्रोधी कह बैठे
दयालु थे बहुत लोग फायदा उठा बैठे
भावुक थे हम लोग हमको ही छल बैठे
ताकतवर तो अधिक ना थे
पर लोग कमजोर समझ बैठे
कोयल तो ना थे पर लोग
 कौवा समझ बैठे
थोड़ा ही सही सभ्य थे हम
लोग असभ्यता का मोहर लगा बैठे
सहज रहते थे अक्सर
लोग कष्ट दे असहजता दे बैठे
दिल में प्यार था बहुत पर
लोग नफरत कह बैठे
बुद्धिमान ना थे अधिक पर
लोग बुद्धिहीन समझ बैठे
धोखा कभी ना दिए किसी को
लोग फिर भी धोखे बाज कह बैठे
बहानेबाज ना थे कभी भी
लोग वह भी हमको कह बैठे
सपने में भी बुरा ना सोचे किसी का
लोग है की हम पर ही शक कर बैठे
 हमेशा बोलते थे सच्चाई से
लोग झूठा साबित कर बैठे
त्यागी थे निस्वार्थ भाव से
लोग सन्यासी समझने की भूल कर बैठे
बदल जाये हम यह फितरत ना थी
लोग हमे गिरगिट  (बदला हुआ )समझ बैठे
हम जो-जो ना थे लोग खुद से
अपने मन में  समझ वह भी कह बैठे
क्या करे कैसे समझाएं
समझा-समझा थक हारकर बैठे||...सविता मिश्रा