Wednesday 30 April 2014

मुक्तक (राजीनति पर)

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हमने सोचा था अपराधी चुनकर नहीं आयेगें
इस बार हम पर कोई कहर नहीं ढ़ायेगें
यह महज कोरा भ्रम ही है शायद हमारा
आशंका है कि अपराधी ही फिर जीत जायेगें  |..सविता 'अक्षजा'

Friday 25 April 2014

हायकु

१..मिट्टी घट थे
निखारा होता गर
आसमा छूते |

२..कृतज्ञ बनें
मानो तो मात-पिता
गुरु से बड़े |

३...गुस्सा काहे का
उपजा दूजे सुख
मन का भ्रम |

४.... 
दर्द  बदले

गुलदस्ता प्यार का
दुआ के साथ |

५...दर्द अपार
अपना दूर कहीं
इच्छा मिलन |

६...सामंजस्य से
चले जीवन पथ
बने जीवन |

७...गप्प-मार ही
समाज सुधारक
बने विकट |


८..दोषी औरत
ठहराते आदमी
कमी छुपाते |

९..तगड़ी धूप

सहना नियती है
नारी जीवन |


१०..धूप प्रखर
निखरता जीवन
साँझ पहर |.
.सविता मिश्रा 'अक्षजा'

Wednesday 23 April 2014

हाइकु

तृष्णा जागती
धन छोड़ ज्ञान में
बनता नेक |

वर्षा की कमी
कंक्रीट का शहर
प्यासे है खग |

खग कल्पते
भटकते अटारी
जल विहीन |

बगैर जल
कपोल कल्पित है
जीवन जीना |

तृष्णा मिलन
दूर बैठे सनम
प्यार बढ़ता |

तृष्णा जागती
प्यास कब बुझती
अथाह चाह |.
.सविता मिश्रा 'अक्षजा'

Thursday 17 April 2014

ये नेता-


दर-बदर भटक-भटककर
चुनावों में
वोट की भीख मांग रहे हैं नेता 
एसी में बैठे आराम फरमा रहे थे अभी तक
अब देखो कितना पसीना बहा रहे हैं ये नेता |

चिल्ला-चिल्ला के गले की
आवाज बैठा रहे हैं ये नेता 

हुलिया अपने शरीर की
देखो बिगाड़ रहे हैं ये नेता 
घर-घर और गली-मुहल्लों के
चक्कर पर चक्कर लगा रहे हैं ये नेता 
आज जरुरत हुई महसूस इन्हें हमारी तो
हमको सिर अपने बैठा रहे हैं ये नेता |

हर व्यक्ती के दर पर जा-जाकर
खूब बहला-फुसला रहे हैं ये नेता 
मालूम है हमको कि क्यों इन दिनों
खूब मेहनत कर रहे हैं ये नेता
चार-दिन मेहनत के बाद ही तो 
सुख-चैन से रहेंगे पांच साल ये नेता |

खून पसीना इन दिनों जो बहा रहे हैं
पांच साल हमारा ही खून पियेंगे ये नेता
देंगे रोजगार अभी जो कहके लुभा रहे हैं
बाद में लिप्त रहेंगे करते हुए भ्रष्टाचार ये नेता |

जानते भी ना थे अब तक ये हमें
अब हमको अपना बता रहे हैं ये नेता
देंगे दो जून की रोटी एवं मुफ्त शिक्षा
यह कह-कहकर हम गरीबों को
सब्जबाग दिखा रहे हैं ये नेता |

वोट की राजनीति देखो हुई कितनी घटिया
एक दुसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं ये नेता 
वोट के लिये अपनी बहू-बेटी से भी
वोट की भीख मंगवा रहे है ये नेता |

स्वयं जहाँ चुनाव-टिकट नहीं मिला
वहाँ परिवारवाद चला रहे हैं ये नेता
लूटमार करी इन्होंने खूब अब तक तो
अब स्वयं को पाक-साफ़ बता रहे हैं ये नेता |

खूब परेशान किया इन्होंने बात-बेबात ही हमको
अब स्वयं को हमारा हितैषी बता रहे हैं ये नेता |

काँटों पर चल रहे थे अब तक हम
अब हमारे रास्ते में फूल बिछा रहे हैं ये नेता
भूखे पेट सो जाते थे गाहे-बगाहे  ही तो हम
अब हमें अपने हाथों से रोटी खिला रहे हैं ये नेता |

दिखती ना थी शक्ल भी जिनकी कभी हमको
अब आकर हमसे हाथ मिला रहे हैं ये नेता
हेय दृष्टि से देखते थे ये हमको कभी तो 
अब हमें अपना भगवान बता रहे हैं ये नेता |

चुनाव जब तक नहीं होते तब तक
हमें सिर-आँखों पर बैठा रहे हैं ये नेता
देखना चुनाव खत्म होते ही हमको
अपने हाल पर छोड़ देंगे ये नेता |

देखने में भले ही लग रहे हैं आज इंसान सरीखे
लेकिन गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं ये नेता || सविता मिश्रा
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Wednesday 9 April 2014

कुछ तो नेक काम कर रहे नेता -


दर-बदर फिर वोट की भीख नहीं मांग रहे नेता
बल्कि हम सबके कर्तव्यों को जगा रहे नेता |

आलसी निठल्ले होकर, बैठे रहते उस दिन घर
हमारी अंतरात्मा को झकझोर के उठा रहे नेता |

धन्नासेठों को दो कदम भी नहीं चलने की आदत होती
कर्तव्य पालन करें पैदल चल-चल खुद सिखा रहे नेता |

लालीपॉप लेकर दे आते हो अपना महत्वपूर्ण वोट
समझो उसके दूरगामी परिणाम समझा-दिखा रहे नेता |

जातिवाद का फैला कितना भयंकर मकड़जाल है
इसकी भयावहता से परिचित तुम्हें करा रहे नेता |

निष्क्रिय जन उठो कुम्भ्करनी नींद से अब जागो
इतना चीख -चीखकर तो तुमको जगा रहे नेता |

वोट देने के अधिकार की लाठी सशक्त हो तुम पकड़ो
तुमको यह अधिकार भी तो अधिकार से दिला रहे नेता |

आलसपन-पव्वा-रूपया-मिठाई का लोभ तुम त्यागो
वोट की वज्र चोट दो दागियों को समझा-बुझा रहे नेता |

न जाने कितने जाति-धर्म में बंट रहे हो तुम सब
परिणाम भुगत रहे हो उसका यह जता रहे नेता |

जातिवाद-राज्यवाद-व्यक्तिवाद का जहर थूको
घुट्टी की तरह तो तुम्हें राष्ट्रवाद पिला रहे नेता |

दर-बदर फिर वोट की भीख नहीं मांग रहे नेता
बल्कि इसी बहाने कई नेक काम तो कर रहे नेता |
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सविता मिश्रा 'अक्षजा'