Tuesday 1 March 2016

सर्वधाम (मात -पिता परमेश्वर)

"क्या चल रहा आजकल?" फोन उठाते ही जेठानी ने पूछा।
"अरे कुछ नहीं दीदी, घर अस्त-व्यस्त है उसे ही समेट रही थी। चारोधाम यात्रा करने चले गए थे न।"
"अच्छा! चारोधाम कर आयी और हमें भनक भी न लगने दी," तुनकते हुए बोली।
"नहीं दीदी ऐसी बात नहीं है!"
"ऐसी-कैसी बात है फिर? वैसे तो तुम कहती हो हर बात बताती हूँ, फिर इतनी बड़ी बात छुपा ली मुझसे! डर था क्या कि हम सब भी साथ हो लेंगे। साथ नहीं चाहती थी तो मना कर देती, छुपाया क्यों?"
"अरे दीदी सुनिए तो...।"
"क्या सुनूँ सुमन। मैं तो सब बात बताती हूँ, पर तुम छुपा जाती हो। अरे ख़र्चा हम भी दे देते। माना हम पाँच और तू चार है ..एक बच्चे का ख़र्चा सहने में तकलीफ़ थी तो बता देती। आगे से कहीं भी जायेंगे तो हम ज़्यादा दे देंगे समझी। एहसान मैं नहीं लेती किसी का।"
"अरे नहीं दी! सुनिए तो ..," फोन कट।
थोड़ी देर में सुमन फिर फ़ोन मिलाकर बोली- "दीदी ग़ुस्सा ठंडा हुआ हो तो सुनिए, आपसे पूछा था मैंने।"
"कब पूछा तुमने?" ग़ुस्से में बोली जेठानी।
"महीने भर पहले ही जब बात हुई थी तभी मैंने आपसे पूछा था कि आप अम्मा-बाबूजी के पास इस गर्मी की छुट्टी में गाँव चलेंगी।"
अब दूसरी तरफ शांति फैल गई थी।
--००--

===(शब्द निष्ठा सम्मान-२०१७ में ३५ वें नम्बर पर सम्मानित) ====

यहाँ  लिखी  थी इसे .
29 February 2016 में ...
https://www.facebook.com/events/979124858844337/permalink/982249925198497/?ref=1&action_history=null