Thursday 21 November 2013

बस दस... :) :)

१--मन टटोलने की यूँ हिमाकत ना किया करो
कही ऐसे करते -दिल ही ना टूट जाये| ..सविता मिश्रा

2--संदेह का लाभ हम खुद ही उन्हें दिला बैठे
अपने ही पाओ पर कुल्हाड़ी चला बैठे| ...सविता

3--जीने की ख्वाइशे किसे थी इस बेरहम दुनिया में
अब तो चाहत हैं किसी दुश्मन को मार कर ही मरे| ..सविता

4--फिरते थे उजाला लिए खरीदार ना मिला कही भी हमें
अँधेरे को बेचने की एक ही आवाज में सब दौड़े आये| ..सविता

5--भ्रम ही हैं देते जीने का एक फलसफा
वर्ना कौन यहाँ जी पाएगा सच्चाई से| .सविता मिश्रा

6--झुकी आँखों को देख गफलत में ना रहो
ये शर्म से नहीं तेरे अदब में झुकी हुई हैं |...सविता मिश्रा

7--सितारों की चमक भी खुद बा खुद फीकी पड़ जाती हैं
घने अँधेरे से जब मिलने को धरती पर आती हैं| ...सविता मिश्रा

8--मौत तो हर पल चुपचाप बैठी हैं अपने ही आगोश में
देख रही तमाशा कि छटपटा रहें हम जिन्दगी की चाह में| ...सविता मिश्रा

9--जाती हुई सांसो के लौटने का करते हैं इन्तजार
मौत रहती हैं इस चाह में कि टूटे सांसो से करार| ..सविता मिश्रा

10--आसमान से धरा पर यूँ गिरा दिया
जैसे कभी हम तुम्हारे कुछ भी ना थे| ...सविता

6 comments:

babanpandey said...

well expressed @ savita bahan jee

babanpandey said...

well expressed @ savita bahan jee

संतोष पाण्डेय said...

छोटे-छोटे टुकड़ों में जीवन का दर्शन। भ्रम ही देते हैं जीने का फलसफा ....वाह।

Rajput said...

आसमां से धरा पे यूं गिरा दिया
जैसे कभी हम तुम्हारे कुछ ना थे....
लाजवाब !

सलाह - text और बैकग्राउंड के कलर combination पर थोड़ा सुधार लाज़मी है। पढ़ने मे दिक्कत होती है ।

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... हर पल तो चुस्ती से बाँधा है ... हर शेर कमाल है ...

संजय भास्‍कर said...

बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार