Sunday 10 June 2018

क्षितिज लघुकथा सम्मेलन के लिए इंदौर यात्रा --1

पहला भाग---

कहीं की भी यात्रा करने का मतलब है कि एक औरत का अभेद्य किला को फतह करने के अभियान पर चलना |
औरत को घर की दहलीज लांघने से पहले एक युद्ध लड़ना पड़ता है | घर की जिम्मेदारियों से मुक्ति का युद्ध! अपनी जिम्मेदारियाँ किसी के कन्धों पर टांगने का युद्ध | फिर कहीं जाना कितना जरूरी है या नहीं इस मुद्दे को साबित करने का युद्ध |
पुरुष वर्ग को कहीं जाना होता है तो घर में फ़रमान जारी कर देता है,लेकिन एक स्त्री के साथ ऐसा बिलकुल नहीं होता है | उसे घर से बाहर निकलने से पहले बहुत कुछ सोचना-समझना पड़ता है | हमें भी इस यात्रा से पहले बहुत ज्यादा मशक्कत करनी पड़ी और हिम्मत भी | क्योंकि अकेले जाने के नाम से ही भय दिलो-दिमाग पर तारी हो जा रहा था |
लघुकथा सम्मेलन में सबसे जाकर मिलना और सभी के विचारों से अवगत होने की महत्ता जाहिर करके पतिदेव से अनुमति और बच्चों से अपने जाने का आदेश-सा सुनाकर हमने इंदौर यात्रा के किले का पहला दरवाज़ा भेद दिया था | 
अब मामला दूसरे दरवाजे पर आकर अटक गया था | अंतरा करवड़े सखी से वार्ता करके पता किया कि कौन परिचित आ रहा है ! लेकिन संध्या तिवारी दीदी के अलावा किसी का पता न चल पाया | फिर दिमाग ने निर्णय लिया कि इंदौर नहीं जाना | अकेले जाना फिर वहाँ अकेले ही घूमना सम्भव ही नहीं है | लेकिन एक दिन पता चला कि नामिनेशन पांच अप्रैल तक बढ़ गया है, जो की पहले बीस मार्च था शायद | बस उसी दिन दिल ने निर्णय लिया कि जाना है और तुरंत ही रात ग्यारह बजे के आसपास हमने कविता वर्मा दीदी को मेसेज कर दिया | फिर दूसरे दिन सतीश राठी भैया से बात करके अपने आने की सूचना प्रेषित कर दी | इस तरह दिल पर कब्ज़ा करके हमने दूसरा दरवाज़ा फतह कर लिया |
अब तीसरा दरवाज़ा मजबूती से अड़ा हमें मुँह चिढ़ा रहा था |
चार दिन बिटिया से विमर्श करके तय हो गया कि बिटिया आगरा आकर मेरे कन्धों का भार अपने कन्धों पर ले लेगी | इस तरह तीसरा दरवाज़ा भी फतह हुआ | 
अब चौथे दरवाजे पर जोर आजमाइश चालु हो गयी | बड़े बेटे ने टिकट करा दी | और नामिनेशन के दो-हजार रूपये भी जमा कर दिए | पन्द्रह मई तक जाने की सीट में तीन वेटिंग (rac) ही जा रही थी | तो लगा कि शायद ईश्वर को हमारा इंदौर जाना नहीं मंजूर है | अंतिम डेट के हफ्ते भर पहले सतीश राठी भैया ने पता कन्फर्म करने के लिए फोन किया तो हमने कहा कि सीट कन्फर्म ही नहीं हुई है तो शायद न आना हो हमारा | लेकिन उन्होंने आश्वत किया कि हो जाएगी चिंता न करें | आपका नाम हमने अपने एक परिचित को दे दिया है आप उन्हें लघुकथा सम्मेलन में जा रहे हैं बता दीजिएगा | लेकिन समय बीतता जा रहा था और सीट थी कि तीन वेटिंग पर ही अटकी पड़ी थी | हमें इंदौर दौरा स्थगित होता ही दिख रहा था कि पतिदेव ने दो दिन पहले अपने एक जानने वाले से बात करके हमारी टिकट की सारी डिटेल देते हुए रिजर्ब कोटा लगवा दिया | दूसरे दिन पता चल गया कि कोटा लगा दिया गया है फिर हमने रात में आश्वत होकर तैयारी फटाफट कर ली | दो बजे रात तक हर सामान यादकर के रख लिया | प्रोग्राम और मंदिर दर्शन करने में साड़ी ही पहनना इस कारण साड़ी की संख्या सलवार-सूट से जयादा रख ली हमने |
सुबह साढ़े दस बजे खुशखबरी मिली कि B-१ में सीट नम्बर ५२ हमें प्राप्त हो गयी है इस तरह मजबूत चौथा दरवाज़ा भी बड़ी जदोजहद के बाद हमारे कब्जे में आ गया था |
पतिदेव हिदायतें देते हुए हर जरुरी चीज रखने की याद दिलाते रहें और फोन-पर-फोन करके ट्रेन की लोकेशन पता करते रहे तो बिटिया चुहल करती हुई बोली ऐसा लग रहा है जैसे पापा मम्मी को विदेश भेज रहे हैं | 
इतना ध्यान हमारे आने-जाने पर नहीं देते हैं | ऐसी ही होती हँसी-ठिठोली में एक पिता अपने बच्चों को कितना प्यार करता याद दिलाते रहे और यह कहकर बचते रहें कि मम्मी पहली बार अकेले जा रही है न ! 
हमारे अंदर भी सोया बैठा डर रह-रहकर जाग रहा था | ऐसा लग रहा था मानो कि कोई बच्चा अपनी माँ की गोदी से निकलकर चाची की गोदी में जा रहा हो | क्या जा लेंगे ! भूलेंगे तो न ! क्या अच्छे से पहुँच जाएंगे फिर वापस आ लेंगे | क्योंकि हमारे आने का तो प्रोग्राम खत्म होने के बाद था | अतः कैसा होटल होगा, आने में कैसे स्टेशन तक आयेंगे, ट्रेन पर चढ़ लेंगे इसका ज्यादा डर था | आगे क्रमशः ...
savita मिश्रा 'अक्षजा'

7 comments:

सतीश राठी said...

वहुत सुन्दर लिखा है कहीं पर प्रकाशित करवाने की योजना भी रहे।

मधु जैन said...

बहुत बढिया अक्षजा । शुरूआत गजब की है, आगे की प्रतीक्षा है।

अशोक शर्मा भारती said...

बहुत ही बढ़िया सुंदर सुगठित। नारी मन के अंतर्मन के भावों के चित्रण की सशक्त शब्दाभिव्यक्ति । आपने विचारों को बहुत ही कौशल पूर्ण तरीके से व्यक्त किया है । जो कि पढ़ने पर शुरु से अंत तक पढ़ने के लिए उत्सुकता जगाती है । आप अपने "क्षितिज अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2018 " के अनुभवों को शब्दाभिव्यक्ति देती रहें ।मित्रों तक भी प्रेषण करें । बहुत -बहुत हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएं । " क्षितिज " द्वारा आयोजित इस लघुकथा सम्मेलन में आपकी सहभागिता से हम कृतज्ञ हैं । यही आत्मीयता सदैव बनी रहे । यही कामना ।
- अशोक शर्मा" भारती "

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

दिल से आभार आपका आदरणीय😊🙏

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

शुक्रिया भैया, दूसरा भाग भी लिख दिए😊🙏

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

आभार आपका, प्रकाशित कौन करेगा हमारी यात्रा-संस्मरण देखना पड़ेगा 😊🙏

Niraj Sharma said...

बढ़िया संस्मरण है । स्त्री की जद्दोजेहद का वर्णन बखूबी किया।