Friday 6 December 2013

~फेसबुकिया मम्मी~


फेसबुक अकाउंट बना पकड़ा दिया हमको
मम्मी देखो ऐसे-ऐसे होता है समझा दिया हमको
पर हम ठहरे मूरख एक बात भी ना समझे थे
क्या करें कैसे करें कुछ भी ना सीखे थे
आर्कुट ही लगता अपने को चंगा
फेसबुक खोल कौन लेता पंगा
आर्कुट पर ही १५- २० मिनट बिताते
सब की फोटो देख खुश हम हो जाते
कौन अपने पर दे रहा कम्मेंट
कुछ ना अता-पता चलता था
फिर भी थोड़ा बहुत वही पर
अपना खाली वक्त बीतता था |

पर उसके बार-बार समझाने पर
धीरे-धीरे कुछ-कुछ समझने लगे थे
एकाक गाने की लाइन पोस्ट कर
फेशबुक की राह पर चलने लग पड़े थे
एक-दो लोग अच्छा कह कर जाते
हम भी धन्यवाद कह खाना पूर्ति कर आते
पर जब सब धीरे-धीरे समझ आने लगा
मंचो से जुड़ने पर अपना मुहं भी खुलने लगा
कोई कुछ भी कहता जबाब झट दे देते
दुआ सलाम होता भाइयों से बैठ बतिया लेते|

शैने-शैने फ्रेंड लिस्ट की संख्या लगी बढ़ने
सब मंच से निकल अपने लिस्ट में लगे थे जुड़ने
फिर क्या था जो दस मिनट में था दम घुटता
ना जाने कब समय बीतने लगा घंटा दो घंटा
अब बिटिया कहती सिखाकर गलती कर दी
मम्मी तो हमारी फेसबुकिया मम्मी हो ली
दाना-पानी देना सब भूल जातीं इस चक्कर में
हमसे ज्यादा खुद ही अब समय बिताती हैं इसमें|
पतिदेव भी कभी-कभी खीझ ही जाते
जब फेशबुक का चक्कर लगाते हमें पाते
तुम तो इस चक्कर में घर को ही भूल जाती हो
हमको भी थोड़ा भी समय नहीं दे पाती हो
तुम ऐसा करो क्यों नहीं इसको ही छोड़ देती हो?

क्या करें हम तुम्हीं बतलाओ
मेरे अस्तित्व को ऐसे तो न झुठलाओ
छूटी थी जो लेखनी इसी से फिर हम पकड़ पाये
रोज कुछ ना कुछ अब तो लिख ही यहाँ जाये
फिर बताओ कैसे हम इसको छोड़ पाये
फालतू का समय ही तो हम यहाँ बिताये
मन के भाव जो दब गए थे कहीं एक कोने
वह फिर से कागज को स्याह करके
अभिव्यक्ति किसी ना किसी रूप में होले |...सविता मिश्रा

6 comments:

दिगम्बर नासवा said...

हा हा परिवार का तारतम्य बिठाना ही पड़ता है ... जो कुछ समय में हो जाता है अपने आप ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

धन्यवाद दिल से Digamber bhaiya .नमस्ते

सुशील कुमार जोशी said...

लिखती रहें !

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

अच्छी प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

sushil bhaiya namste.........abhar :):)

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

prasanna bhai abhar aapka