Friday 25 July 2014

समय रहते -

भटकाव अनगिनत
भटक तुम ना जाना
तुम बच्चे बड़े सयाने
कहीं लटक ना जाना

इतने सारे लुभावने
गजेट्स हैं आयें
राह भटकावन की
बड़े जोर-शोर से
तुम्हें ये दिखलायें

इन लुभावनी चीजों में
पढ़ाई को भूल ना जाना
खेल-कूद करके भी तो
शरीर को है बलिष्ठ बनाना

बैठे-बैठे गजेट्स में
रहोगें जो उलझे
डोर भविष्य की तुम्हारी
उलझी तो फिर ना सुलझे

ये लुभावने वादे कर
तुम्हे खूब भरमायेंगी
भ्रम में फँसे जो तुम
सुलझाने की उम्र तुम्हारी
फूर्रss से निकल जाएगी

अतः समय रहते ही
जिन्दगी को सुलझाओ
मन को ऐसे मत तुम
भ्रम जाल में भटकाओ | ...सविता मिश्रा 'अक्षजा'
‎Savita Mishra‎ to भटकावेगी राह छलावी
25 July 2014

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सही बात लेकिन बच्चे समझते कहाँ हैं जी :)

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

सुशिल भैया सादर नमस्ते ...शुक्रिया आपका