Friday 25 July 2014

परिवेश (लघुकथा )


आज कुछ ज्यादा ही सब्जियाँ खरीद लीं तो बोझ से नीलम बेहाल हो गई। तभी साल भर के बच्चे को उठाये दस बारह वर्ष की बच्ची ने जब नीलम के आगे हाथ फैलाये तो उसे चॉकलेट देते हुए उससे एक थैला घर पहुँचाने पर उसे दस रुपये देने का कहा।
लड़की ने बच्चे को बगल में दबाया, दूसरे हाथ से थैला थाम लिया और नीलम के साथ चलने लगी। खुद का बोझा कम होने से मिली राहत के कारण अब नीलम का ध्यान उस लड़की पर गया। "तुम्हारा नाम क्या है ?"
"बिनुई" , लडकी ने शरमा कर कहा।
"और इस नन्हे का?"
"लालू" चलते-चलते उसने जवाब दिया।
"माँ कहाँ है तुम्हारी ?"
"काम पर गयी "
"स्कूल नहीं जाती ?"
"नहीं .."
"लालू को ऐसे गोद में लिए थकती नहीं ?"
"नहीं ..!"
हर सवाल का संक्षिप्त सा उत्तर मिला |

नीलम को याद आया जब उसने अपनी बेटी हिमा को कहा था "बेटा यह सब्जी का थैला अंदर रख दो।"
बिटिया ने कुछ देर कोशिश की लेकिन उससे वह थैला उठा ही नहीं। "मम्मी मुझसे नहीं उठ रहा तुम खुद ले लो न|" उसने ठुनकते हुए कहा था।

उस दिन ना जाने क्यों उसे गुस्सा आ गया था - "तू दस साल की है और तुझसे चार किलो का थैला नहीं उठ रहा।"
"माँ सच में नही उठ रहा " उसने फिर से कोशिश करते हुए जवाब दिया।
"गरीब बच्चों को देख, वह चार पांच साल में ही कितना भारी-भारी बोझा उठा लेते हैं | वह भी बिना चेहरे पर शिकन लाए |" उसने खीझते हुए कहा था।
"तो क्या मम्मी हम जो कर सकते हैं वो सब वे गरीब बच्चे भी कहां कर पाते हैं | साइंस, मैथ्स, इंग्लिश पढ़ना, रात देर तक जाग कर प्रोजेक्ट बनाना !" कहकर वह मगन हो गयी थी टीवी देखने में |


सही तो कह रही थी हिमा! जिसको जैसे परिवेश में पालेंगे वैसे ही तो बनेगा |
लालू के किलकने पर वह यादों से बाहर आई और उस बच्ची से बोली "तुम पढ़ोगी..!"
"नहीं...!"
"क्यों..?"
"माँ कहती है पढ़ाई बोझ है। हम जैसे लोग नहीं उठा सकते। और फिर इसे कौन सम्भालेगा..!" कहते ही वह लालू को गोद में लिए चल दी ।
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सविता मिश्रा "अक्षजा'
 आगरा 
 
2012.savita.mishra@gmail.com


2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

लिख देना ठीक है होना वही है :)

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

सही कह रहे भैया आप लिखकर ही संतुष्टि कर लिए