Friday 23 December 2016

बेटी (लघुकथा-मूल्य )

छुट्टी की बड़ी समस्या है दीदी, पापा अस्पताल में नर्सो के सहारे हैं! भाई से फोनवार्ता होते ही सुमी तुरन्त अटैची तैयार कर बनारस से दिल्ली चल दी
अस्पताल पहुँचते ही देखा कि पापा बेहोशी के हालत में बड़बड़ा रहें थेउसने झट से उनका हाथ अपने हाथों में लेकर, अहसास दिला दिया कि कोई है, उनका अपना
हाथ का स्पर्श पाकर जैसे उनके मृतप्राय शरीर में जान-सी आ गयी हो
वार्तालाप घर-परिवार से शुरू हो न जाने कब जीवन बिताने के मुद्दे पर आकर अटक गयी
एक अनुभवी स्वर प्रश्न बन उभरा, तो दूसरा अनुभवी स्वर उत्तर बन बोल उठा- "पापा पहला पड़ाव आपके अनुभवी हाथ को पकड़ के बीत गया दूसरा पति के ताकतवर हाथों को पकड़ बीता और तीसरा बेटों के मजबूत हाथों में आकर बीत गया"
"चौथा ..., वह कैसे बीतेगा, कुछ सोचा? वही तो बीतना कठिन होता बिटिया"
"चौथा आपकी तरह!"
"मेरी तरह! ऐसे बीमार, नि:सहाय!"
"नहीं पापा, आपकी तरह अपनी बिटिया के शक्तिशाली हाथों को पकड़, मैं भी चौथा पड़ाव पार कर लूँगी"
"मेरा शक्तिशाली हाथ तो मेरे पास है, पर तेरा किधर है?" मुस्कराकर बोले
"नानाजी" तभी अंशु का सुरीला स्वर उनके कानों में बजकर पूरे कमरे को संगीतमय कर गया
--००--
सविता मिश्रा
"अक्षजा'
 आगरा 
 2012.savita.mishra@gmail.com इस ब्लॉग पर पहली बार लिखा इसे ...
http://openbooks.ning.com/.../blogs/5170231:BlogPost:809199
--००--

पहले का अंत..."नानाजी" तभी अंशु का ऊँचा स्वर कानों में घंटी सा बज, पूरे कमरे में गूँज उठा समवत दो और स्वर गूँजे! आवाज़ पहचानकर, भावातिरेक में सुमी उठी तो लड़खड़ा गयी दोनों बेटे आगे बढ़कर दोनों हाथ पकड़, उसे सम्भाल लिए
यह देखकर सुमी के पिता गर्व से बोले-"संस्कारित जमीन में चंदन ही महकेगा, कँटीला बबूल थोड़ी।"

2 comments:

Himanshu Mahla said...

बहुत पसंद आयी कहानी सविता जी,,,,लिखती रहिये,,,

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

बहुत बहुत आभार _/\_सादर