लघुत्तम-महत्तम लघुकथा-संकलन-अभ्युत्थान प्रकाशन
संपादिका
-महिमा 'श्रीवास्तव' वर्मा
प्रकाशन
समय - अगस्त २०१८
लघुकथा
के १४वें संकलन में मेरी 'तीन' लघुकथाओं को स्थान दिया
गया है | संपादिका महिमा 'श्रीवास्तव'
वर्मा का आभार।
१--एक
बार फिर
२--वेटिकन सिटी
३--इज्ज़त
२--वेटिकन सिटी
३--इज्ज़त
--००--
एक
बार फिर
"कहाँ आगे-आगे बढ़े जा रहे हो जी', मैं पीछे रह जा रही
हूँ |"
"तुम हमेशा ही तो पीछे थी |" पार्क से बाहर
निकलकर पति ने कहा |
"मैं आगे ही रही !" पत्नी पति के बराबर आकर बोली |
"अच्छा ..!"
"और चाहूँ तो हमेशा आगे ही रहूँ, पर तुम्हारे अहम को
ठेस नहीं पहुँचाना चाहती हूँ, समझे !"
"शादी वक्त जयमाल में पीछे रही...!"
"डाला जयमाल तो मैंने आगे !"
"फेरे में तो पीछे रही..!"
"तीन में पीछे, चार में तो आगे रही न !"
"गृह प्रवेश में तो पीछे..!"
"जनाब ! भूल रहे हैं, वहां भी मैं आगे थी |
"
इसी
आगे पीछे को लेकर एक-दूजे से नोंकझोक करते हुए ही बेफिक्र हो बाइक से घर की ओर जा
रहे थे | सुनसान रास्ते पर बदमाशों ने उनकी बाइक को रोककर
तमंचा तान दिया - "निकालो सारे गहने" चीखा एक |
पत्नी
को अपने पीछे कर, पति बदमाशों से भिड़ गया |
जैसे
ही घोड़ा दबा, उसकी बाहों में झूलती हुई पत्नी मुस्करा कर बोली-
" लो जी ! यहाँ भी मैं आगे ..!" सावित्री-सी होने का अहम उसके चेहरे पर
तारी होने को था |
"ऐसे-कैसे मेरी शेरनी ! मैं तो रेड बेल्ट पर ही अटक गया था, तू तो ब्लैक बेल्ट थी | इतने में ही हिम्मत टूट गयी
!
सुनकर
वह दहाड़ी | बाह में गोली लगने के बावजूद पति के हमकदम हो लड़ी
थक के चुकते दोनों इससे पहले ही सायरन की आवाज़ गूंजने लगी | बदमाशों
के रफूचक्कर होते ही दोनों एक दुसरे के बाँहों में मुस्कराकर बोले हम साथ-साथ हैं,
न आगे न पीछे |"

२--वेटिकन सिटी इस लिंक पर --
http://kavitabhawana.blogspot.com/2015/05/blog-post_15.html
३--इज्ज़त इस लिंक पर --
http://kavitabhawana.blogspot.com/2017/05/blog-post_12.html
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