Friday 30 October 2020

प्यार की महक/लघुकथा

 कथादेश पुरस्कृत लघुकथाएँ (पुस्तक)

सम्पादक - श्री हरिनारायण एवं श्री सुकेश साहनी
लघुकथा - प्यार की महक

हर दिन कभी फोन पर कभी आमने-सामने सावन की फुहार-सा पति का प्यार पत्नी पर बरसता रहता था। पत्नी रेखा प्रेम के घने बादलों को ओढ़े हुए अपने घर के कोने-कोने में भाद्रपद के मेघ-सी बरसती रहती थी । गलती होने पर भी मम्मा डांटती नहीं है यह देखकर बच्चें भी खुश रहते थे। घर का हर कोना खिलखिलाता रहता था। रसोई भी तरह-तरह के पकवानों से महकती रहती थी।

लेकिन आज सुबह से सब कुछ उलट चल रहा था । बड़ा बेटा अपनी बहन के कान में फुसफुसाया- “आज कोई गलती नहीं करना ! मम्मी का पारा चढ़ा हुआ है ।”
“क्या हुआ ?”
“सुबह ऑफिस जाते समय पापा से मम्मी की लड़ाई हो गई है।” वह डरते हुए बोला |
“ओह! तब चलो ! पढ़ने चलते हैं । टीवी बंद कर दो।”
रेखा के काम तो सभी हो रहे थे लेकिन गुस्से के साथ । आज रसोई से बर्तनों की आवाजें उछलती हुई बच्चों के रूम तक पहुँच रही थीं। बच्चे समझ रहे थे कि आज कुछ पसंद का खाना खाने को कहना, मतलब आग में घी डालना। जो बनकर आया, शांति से थोड़ा-सा खा लिया । स्वाद जीभ को खराब लगा लेकिन माँ के आगे उन दोनों का चेहरा मुस्कुरा रहा था ।

तभी पति का आगमन हुआ- “क्या हुआ ! रोज की तरह मेरा स्वागत नहीं करोगी?”
पति  रेखा के चेहरे पर झुका लेकिन रेखा चमककर रसोई में चली गई । पति भी उधर चला और उसने एक लाल गुलाब रेखा को पकड़ा दिया । फिर भी प्यार की महक से घर नहीं महका। अकेले गुलाब की सुगंध ही रसोई में विचरण करने लगी।
पति ने जेब से मीठा पान निकाल रेखा के मुँह में डालते हुए बोला- “महीनों से लड़ाई नहीं हुई थी। मीठा ज्यादा होने से उसमें कीड़े पड़ जाते हैं । जिंदगी में कुछ नमकीन भी होना चाहिए न! नमकीन के बाद जो मीठा खाने का स्वाद आता है न! उसकी तो पूछो ही नहीं।”
पान की शौक़ीन रेखा के मुँह में प्यार से खिलाए पान के घुलते ही सुबह से गमगीन पड़ी रसोई फिर से चहक उठी। यह चहचहाहट एक बार फिर बन्द दरवाजों को भेदती हुई पूरे घर में फैल गई । पूरा घर फिर से महक उठा | बेटे की खनकती आवाज गूंजी – “मम्मी ! आलू के पराठे बनाइएगा । बहुत तेज भूख लगी है।”

सविता मिश्रा 'अक्षजा'
आगरा, (प्रयागराज)
2012.savita.mishra@gmail.com
ब्लाग - मन का गुबार एवं दिल की गहराइयों से |   

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