Monday 13 January 2014

इंसानियत जगा रहे है

हमें हैरान-परेशान देख
एक व्यक्ति ने हमसे पूछा
क्या खोज रही है आप ?
हमने कहा ही था
कि इंसानियत !!
वह सुन सकपकाया
हमें तरेर कर देखा
शायद पागल समझ बैठा
थोड़ा हैरान हो बोला
बड़ी अजीब हो
यहाँ इंसानों की भीड़ है भरी
और तुम्हे इंसानियत ही नहीं दिखी !
हमने कहा
नहीं ! कहीं नहीं !
हाँ, बिलकुल नहीं दिखी !
वह बड़बड़ाता हुआ
मुड़-मुड़कर बार-बार
अजीब निगाहों से
देखता हुआ चला गया|
क्या आपको भी
हम पागल दिखते हैं !
आप ही बताओ
सड़क पर घिसटते हुए
आदमी को देख
मुहँ फेर चल देना
क्या इंसानियत होती है ?

भीख मागते इंसानों के
मुहँ पर ही
उसे बिना कुछ दिए
अशब्दों की पोटली
थमा चल देना
क्या इंसानियत होती है ?
मदद के लिए पुकार रहे
कातर ध्वनि को
अनसुनी कर देना
क्या इंसानियत होती है ?
आप ही बता दो
इंसान क्या ऐसे होते हैं !!
अब तो हम हतप्रभ है
यह देखकर कि
हम जिसे बाहर
खोजना चाह रहे थे
वह तो अपने ही अंदर
नहीं पा रहे
अतः
दुसरे को कोसना छोड़ कर
अब खुद में ही थोड़ी
इंसानियत जगा रहे हैं |

इंसानियत खोजने में आप सब मदद करेंगे न !!

6 comments:

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

नमस्ते सुशील भैया ....बहुत बहुत धन्यवाद आपका

कमल नयन दुबे said...

वाह , बहुत सुंदर

कमल नयन दुबे said...

वाह , बहुत सुंदर

कमल नयन दुबे said...

वाह , बहुत सुंदर

कमल नयन दुबे said...

वाह , बहुत सुंदर

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

शुक्रिया कमल भैया