Wednesday 22 January 2014

++ एक दिव्यआत्मा++

आज इत्तिफाकन हम
मंदिर जाने को हुए
चन्दन रोली हल्दी
अक्षत दीपक बाती
सिंदूर भी संग रख लिए
घर से नीचे उतरे ही थे कि
संजोग से एक दिव्यआत्मा मिले
मधुर मुस्कान रख अधर
बोले अति प्रिय वाणी
कहा चली तू ओ नास्तिक नारी

हमें लगा कोई मुरख बना रहा
छोडो रास्ता मंदिर हमे है जाना
आज बड़ी विपत्ति
आते आते टली है
प्रभु की मिन्नत की
तब यह आई शुभ घड़ी है
चोट पर चोट लग गयी थी
प्रभु कृपा से हड्डी
टूटने से बच गयी है
उसे शुक्रिया कहते आये
रास्ते में आप मिले ठाड़े
अब देर हुई तो नास्तिक
हमें फिर समझ बैठेगा

वह फिर मुस्काए
संजोग कितना अच्छा है
तुझे मैं यही पर मिला
अब कही जाने की जरुरत क्या
सब अच्छा होगा
तुझसे बड़ा भक्त
कोई कही है भला
दुःख सुख में समभाव
पल पल याद रखती है
इसीलिए देख तुझसे मिलने आया

एकबारगी मन में ले भक्ति भाव
उनके दिव्य आभा में हुए लीन
तभी बच्चे की आवाज सुन पलटें
पलटते ही प्रभु अंतर्धान हुए
हम थाल लिए सुन्न खड़े
सोचते रहे कही प्रभु को
कुछ गलत तो नहीं कहें
उल्टे पाँव भी घर को हो लिए |सविता मिश्रा

10 comments:

दिगम्बर नासवा said...

प्रभू खुद ही आ गए दर्शन देने तो फिर क्या गलत क्या सच ... चाहे सपना हो या कुछ और ... इसे मानो सच ...

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर !

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

Digamber Naswa भैया नमस्ते ....बहुत-बहुत आभार दिल से

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

सुशील भैया नमस्ते ...आभार दिल से आपका भैया

Kailash Sharma said...

प्रभु सब कुछ जानता है, फिर सही और गलत का प्रश्न ही कहाँ रह जाता है...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

kailash bhaiya namste ......shukriya aapka

Jyoti khare said...

प्रभावशाली
बहुत सुंदर---!!!!!

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

namste jyoti chachaji ..abhar aapka

Unknown said...

देर आये दुरुस्त आये सविता जी......अब मुझे एक और ब्लॉग परिवार मिल गया..बहुत बहुत धन्यवाद

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

आभार अंशु sis आपका ब्लॉग को ज्वाइन करने के लिए ...:)