Tuesday 4 February 2014

इन्कलाब लाने का साहस

विद्रोह क्रांति इन्कलाब
ये सब खोखले शब्द मात्र है
इन शब्दों के झमेले में
जो कोई भी कभी पड़ा
अपनी दुर्दशा देख
पश्चाताप के आंसू रोया।

दुर्दशा को नजर अंदाज कर
कुछ विद्रोह के स्वर
फिर भी मुखरित हुए,
पर दबी जुबान में
आमने-सामने विद्रोह से
कतराते है लोग।

विद्रोही बनना
आसान बात नहीं होती है ...
कहीं -कहीं क्रान्ति की
उठती है आवाज
आग की लपटों सी
पर बड़ी जल्दी
ठंडी भी पड़ जाती है।

चिंगारी फिर भी
दबी रहती है,
राख के ढेर में
बस हवा देने भर की
देर होती है।

हवा देने वालों में
इतना दमखम नहीं होता कि
वह इस लपट को
दूर तक ले जा सकें
एक नया इन्कलाब ला सकें।

इस भटके हुए दूषित, शापित
समाज, देश में और खुद में भी
इन्कलाब लाने का साहस
हममें तो नहीं क्या आप में हैं ?

---00---
सविता मिश्रा 'अक्षजा'

6 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर !
अपने आप से बस लड़ते रहना है
ज्यादा से ज्यादा हवा से कह देना है :)

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

सुशील भैया नमस्ते ......शुक्रिया दिल से ....यही कोशिश जारी है

संजय भास्‍कर said...

बहुत बढ़िया

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

sanjay bhai dhanyvaad apka

Satish Saxena said...

अब विद्रोह जरूरी है !!

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

सतीश भैया नमस्ते ...आभार आपका दिल से