इस चित्र पर नया लेखन ग्रुप में
"तू मुझसे चार साल छोटा था, कितनी बार तुझे डांटा-मारा मैंने | यहाँ तक की बोलना बंद कर देता था, जब तू कोई गलती करता था| फिर भी तू मुझसे हर पल चिपक माफ़ी मांगता रहता| आज मेरी एक छोटी सी बात का तू इतना बुरा मान गया कि परिवार सहित चल दिया|"
"मैं तुझे स्टेशन तक मनाने आया पर तू न माना, तेरे दिल में तो तेरी पत्नी-बच्चों का ओहदा मुझसे अधिक हो गया रे छोटे|"
थोड़ा सांस लेते हुए रुके फिर बोले - "अरे तेरी पोती क्या मेरी ना थी| उसे मैंने जो कहा उसकी भलाई के लिए ही तो कहा न|"
"मैंने शादी नहीं की| सारा प्यार-दुलार तुम पर,अपने बच्चों, फिर नाती-पोतो में ही तो बांटा न मैंने| तो क्या मुझे इतना भी हक ना था|" छाती सहलाने लगे जैसे प्राण बस निकल ही रहे थे उसे सहेज रहे हो थोड़ी देर को|
"जा छोटे जहाँ भी रह सुखी रह| तुझे मुझसे बिछड़ने का दुःख भले ना हो, पर मैं अपने इन निरछल आंसुओ का क्या करूँ जो रुकतें ही नहीं हैं |"
"एक ना एक दिन तू इन आंसुओ की कीमत को समझेगा पर तब तक ......| हो सके तो मेरे अर्थी को कन्धा देने जरुर आना छोटे...मेरे ऋण से मुक्त हो जायेगा|"
चिठ्ठी पढ़ते ही वर्मा जी फफकते हुए रो पड़े| सुबकते हुए बोले भैया आप सही थे गलती मेरी ही थी| मैं बहू के बहकावे में आ गया| आपकी बात सुन लेता तो आपकी पोती को लिव-इन-रिलेशनशिप के दर्द से बचा पाता| उसके बहके कदम वापस तब आए जब पाँव में छाले हो गए |" सविता मिश्रा
"तू मुझसे चार साल छोटा था, कितनी बार तुझे डांटा-मारा मैंने | यहाँ तक की बोलना बंद कर देता था, जब तू कोई गलती करता था| फिर भी तू मुझसे हर पल चिपक माफ़ी मांगता रहता| आज मेरी एक छोटी सी बात का तू इतना बुरा मान गया कि परिवार सहित चल दिया|"
"मैं तुझे स्टेशन तक मनाने आया पर तू न माना, तेरे दिल में तो तेरी पत्नी-बच्चों का ओहदा मुझसे अधिक हो गया रे छोटे|"
थोड़ा सांस लेते हुए रुके फिर बोले - "अरे तेरी पोती क्या मेरी ना थी| उसे मैंने जो कहा उसकी भलाई के लिए ही तो कहा न|"
"मैंने शादी नहीं की| सारा प्यार-दुलार तुम पर,अपने बच्चों, फिर नाती-पोतो में ही तो बांटा न मैंने| तो क्या मुझे इतना भी हक ना था|" छाती सहलाने लगे जैसे प्राण बस निकल ही रहे थे उसे सहेज रहे हो थोड़ी देर को|
"जा छोटे जहाँ भी रह सुखी रह| तुझे मुझसे बिछड़ने का दुःख भले ना हो, पर मैं अपने इन निरछल आंसुओ का क्या करूँ जो रुकतें ही नहीं हैं |"
"एक ना एक दिन तू इन आंसुओ की कीमत को समझेगा पर तब तक ......| हो सके तो मेरे अर्थी को कन्धा देने जरुर आना छोटे...मेरे ऋण से मुक्त हो जायेगा|"
चिठ्ठी पढ़ते ही वर्मा जी फफकते हुए रो पड़े| सुबकते हुए बोले भैया आप सही थे गलती मेरी ही थी| मैं बहू के बहकावे में आ गया| आपकी बात सुन लेता तो आपकी पोती को लिव-इन-रिलेशनशिप के दर्द से बचा पाता| उसके बहके कदम वापस तब आए जब पाँव में छाले हो गए |" सविता मिश्रा
9 comments:
सुंदर ।
abhar सुशील भैया आपका ...दिल की गहराइयों से ...
मार्मिक कहानी बच्ची
vibha दी दिल से शुक्रिया ...सादर नमस्ते
मार्मिक
आपकी लेखनी भी निरंतर चलती रहे यही कामना है
मर्मस्पर्शी...
sanjay भाई आभार आपका दिल से
कैलाश भैया आभार ..सादर नमस्ते
Post a Comment