Friday 15 May 2015

वैटिकन सिटी

"मेरी बच्ची! तू सोच रही होगी कि मैंने इस तीसरे अबॉर्शन के लिए सख्ती से मना क्यों नहीं किया!" ओपीडी के स्ट्रेचर पड़ी बिलखती हुई माँ ने अपने पेट को हथेली से सहलाते हुए कहा।
पेट में बच्ची की हल्की-सी हलचल हुई।
"तू कह रही होगी कि माँ डायन है! अपनी ही बच्ची को खाए जा रही है। नहीं! मेरी प्यारी गुड़िया, मैं उद्धार कर रही हूँ तेरा। इन अहसान-फरामोशों की बस्ती में आने से पहले ही मैं मुक्त कर रही हूँ तुझे।"
पेट के बायी ओर हलचल तेज हुई। लगा जैसे शिशु पैर मार रहा है।
"गुस्सा न हो मेरी लाडली ! क्या करूँ, बेबस हूँ ! और तेरे भविष्य की भी चिंता है न मुझे?
"माँ-माँss.." करुणा भरी आवाज़ आयी।
"क्या हुआ मेरी बच्ची?" माँ बेचैन हो गयी।
"माँआआअ, सुनो न ! देखो तो! तुझे सुलाकर, डॉक्टर अंकल मेरे पैर काटने की कोशिश में लग गए हैं..!"
"ओ मुए डॉक्टर! मेरी बच्ची, मेरी लाडली को दर्द मत दे। कुछ ऐसा कर ताकि उसे दर्द न हो ! भले मुझे कितनी भी तकलीफ़ दें दे तू।"
"माँ मेरा पेट...!"
"ओह मेरी लाडली ! इतना-सा कष्ट सह ले गुड़िया, क्योंकि इस दुनिया में आने के बाद इससे भी भयानक प्रताड़ना झेलनी पड़ेगी तुझे !
मुझे देख रही है न ! मैं कितना कुछ झेलकर आज उम्र के इस पड़ाव पर पहुँची हूँ।
इस जंगल में स्त्रीलिंग होकर जीना आसान नहीं है, नन्हीं गुड़िया।"
"माँ -माँआआआ, इन्होंने मेरा हाथ.!"
"आहss! चिंता न कर बच्ची। बस थोड़ा-सा कष्ट और झेल ले! जिनके कारण तूझे इतना कष्ट झेलना पड़ रहा है, वो एक दिन "वेटिकनसिटी" बने इस शहर में रहने के लिए मजबूर होंगे, तब उन्हें समझ आएगी लड़कियों की अहमियत।" तड़पकर माँ बोली।
"माँsss अब तो मेरी खोपड़ी ! आहss ! माँsssss ! प्रहार पर प्रहार कर रहे हैं अंकल!"
"तेरा दर्द सहा नहीं जा रहा नन्हीं! मेरे दिल के कोई टुकड़े करें और मैं जिन्दा रहूँ! न-न! मैं भी आ रही हूँ तेरे साथ! अब प्रभु अवतार तो होने से रहा। मुझे ही इस पुरुष वर्ग को सजा देने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा न!"
"माँSSS!"
"मैं तेरे साथ हूँ गुड़िया...! वैसे भी लाश की तरह ही तो जी रही थी। स्त्रियों को सिर उठाने की आज़ादी कहाँ मिलती है इस देश में। तुझे जिंदा तो रख न सकी किन्तु तेरे साथ मर तो सकती ही हूँ! यही सजा है इस पुरुष प्रधान समाज को मेरे अस्तित्व को नकारने की।"
तभी सुरेश ओपीडी के अंदर बदहवास-सा दाखिल हो गया..!
"सॉरी सर!
  तैयारी पूरी हो गयी है। बाहर रहिये ! आप ये सब देख नहीं पायेंगे।"
"नहीं डॉक्टर! दुनिया में एक और वैटिकन शहर नहीं बनने देना है हमें!
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
--००--

1 comment:

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

"मेरी बच्ची, तू सोच रही होगी कि माँ डायन है, अपनी ही बच्ची को खाए जा रही है। पर नहीं, मेरी प्यारी गुड़िया, मैं उद्धार कर रही हूँ तेरा| इन अहसान-फरामोशों की बस्ती में आने से पहले ही मुक्त कर रही हूँ तुझे| क्या करूँ, बेबस हूँ और तेरे भविष्य की भी चिंता है न मुझे?"
"माँ-माँss.."
"क्या हुआ मेरी बच्ची ?"
"माँआआअ, सुनो न, देखो डाक्टर अंकल ने पैर काट दिए मेरे..."
"ओ मुए डॉक्टर ! मेरी बच्ची, मेरी लाडली को दर्द मत दें| कुछ ऐसा कर ताकि उसे तकलीफ़ न हो|"
"माँ मेरा पेट..."
"ओह मेरी लाडली, इतना कष्ट सह ले गुड़िया, क्योंकि इस दुनिया में आने के बाद इससे भी भयानक प्रताड़ना झेलनी पड़ेगी तुझे !

मुझे देख रही है न, मैं कितना कुछ झेलकर आज उम्र के इस पड़ाव पर पहुँची हूँ|"

"माँ -माँआआआ, इन्होंने मेरा हाथ .."
"आहss मेरी नन्ही गुड़िया, चिंता न कर बच्ची। जिनके कारण तूझे इतना कष्ट झेलना पड़ रहा है, वो एक दिन "वेटिकनसिटी" बने इस शहर में रहने के लिए मजबूर होंगे, तब समझ आएगी लड़की की अहमियत|" तड़पकर माँ बोली
"माँsss अब तो मेरी खोपड़ी आहss माँsssss प्रहार कर रहे हैं अंकल !"
"तेरा दर्द सहा नहीं जा रहा, मेरे दिल के कोई टुकड़े करें और मैं जिन्दा रहूँ ! न-न, मैं भी आ रही हूँ तेरे साथ|
वैसे भी लाश की तरह ही जी रही थी | आज मैं भी ...."
डॉक्टर बाहर आकर .."सॉरी सर, मैं माँ को नहीं बचा पाया| मैंने पहले ही कहा था बहुत रिस्क है इसमें ...."
सुरेश ने माथा पीट लिया ....| अनचाहे के चक्कर में उसने अपनी चाहत भी खो दी थी |