Thursday 14 May 2015

पछतावा (लघुकथा )

"बाबा आप अकेले यहाँ क्यों बैठे हैं? चलिए आपको आपके घर छोड़ दूँ|"
बुजुर्ग बोले, "बेटा जुग जुग जियो। तुम्हारे माँ-बाप का समय बड़ा अच्छा जायेगा| और तुम्हारा समय तो बहुत ही सुखमय होगा|"
"आप ज्योतिषी हैं क्या बाबा?"
हँसते हुये बाबा बोले- "समय ज्योतिषी बना देता है। गैरों के लिए जो इतनी चिंता रखे, वह संस्कारी व्यक्ति दुखित कभी नही होता| " आशीष में उनके दोनों हाथ उठ गये फिर से|
"मतलब बाबा ? मैं समझा नहीं| "
"मतलब बेटा मेरा समय आ गया| अपने माँ-बाप के समय में मैं समझा नहीं कि मेरा भी एक-न-एक दिन तो यही समय आएगा| समझा होता तो ये समय नहीं आता|" नजरे धरती पर गड़ा दीं कहकर|
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सविता मिश्रा "अक्षजा'
९४११४१८६२१
 आगरा 
 2012.savita.mishra@gmail.com

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