शिखा अपने पड़ोसन अमिता और बच्चो के साथ
पार्क में घूमने गयी।
चारों बच्चे दौड़-भाग करने में मशगूल हो गये, शिखा भी अमिता के साथ गपशप करने
लगी, गपशप करते हुए समय का पता ही नहीं चला। पता तब चला, जब घर पर पहुँच शिखा के पति उमेश
का फोन आया।
शिखा अपने बच्चों को आवाज़ दी, "श्रेया, मुदित जल्दी आओ घर चलना है।"
दोनों दौड़े-दौड़े माँ के पास पहुँचे ही थे कि शिखा उनके दोनों हाथो में पार्क के सुंदर-सुंदर फूल देख, ठगी सी इधर-उधर देखने लगी। कोई पार्क का पहरेदार देखकर गुस्सा ना करने लगे। तभी अचानक श्रेया से अमिता का बेटा दौड़ते हुए भिड़ गया। श्रेया ज़मीन पर गिर गयी, जिसके कारण उसके घुटने छिल गये। वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।
शिखा और अमिता दोनों उसे चुप कराने लगे और चोट पर फूंक मारने लगे।
अमिता उसे चुप कराते हुए बोली, "बेटा देखो तुम्हें चोट लगी तो हम सब को दुःख हुआ, इसी तरह तुम्हारे फूल तोड़ लेने से पौधों को भी दुःख हुआ होगा न। फूल और पौधा दोनों ही रोये होंगे।"
श्रेया भिनक गयी, "हमें चोट लगी और आप दोनों को पौधों-फूलों की पड़ी है। आप दोनों ही गंदे हो, पापा से बोलूँगी मैं।"
शिखा मुस्कराते हुए बोली, "अच्छा बाबा! चलो, घर बता देना पापा की लाडली...।" शिखा बच्चों के साथ घर आ गयी, घर में श्रेया पापा से रो-रो बताने लगी।
पापा ने मरहम पट्टी की और उसे संतुष्ट करने के लिए माँ को भी डांट लगाई। फिर बात करते-करते श्रेया को घर के बाहर ले गये।
बाहर खड़े कैक्टस में से एक पत्ती तोड़ बोले, "देखो! बेटा इसको भी चोट पहुँची न। पत्ती और पेड़ दोनों आँसू बहा रहे हैं न!"
--००--
22 June 2014
*एक उलझन और एक सुलझा हुआ जवाब *
Event for बाल उपवन [ साहित्यिक मधुशाला ]
(संकल्प) (पिता लाडली) पिछले शीर्षक
शिखा अपने बच्चों को आवाज़ दी, "श्रेया, मुदित जल्दी आओ घर चलना है।"
दोनों दौड़े-दौड़े माँ के पास पहुँचे ही थे कि शिखा उनके दोनों हाथो में पार्क के सुंदर-सुंदर फूल देख, ठगी सी इधर-उधर देखने लगी। कोई पार्क का पहरेदार देखकर गुस्सा ना करने लगे। तभी अचानक श्रेया से अमिता का बेटा दौड़ते हुए भिड़ गया। श्रेया ज़मीन पर गिर गयी, जिसके कारण उसके घुटने छिल गये। वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।
शिखा और अमिता दोनों उसे चुप कराने लगे और चोट पर फूंक मारने लगे।
अमिता उसे चुप कराते हुए बोली, "बेटा देखो तुम्हें चोट लगी तो हम सब को दुःख हुआ, इसी तरह तुम्हारे फूल तोड़ लेने से पौधों को भी दुःख हुआ होगा न। फूल और पौधा दोनों ही रोये होंगे।"
श्रेया भिनक गयी, "हमें चोट लगी और आप दोनों को पौधों-फूलों की पड़ी है। आप दोनों ही गंदे हो, पापा से बोलूँगी मैं।"
शिखा मुस्कराते हुए बोली, "अच्छा बाबा! चलो, घर बता देना पापा की लाडली...।" शिखा बच्चों के साथ घर आ गयी, घर में श्रेया पापा से रो-रो बताने लगी।
पापा ने मरहम पट्टी की और उसे संतुष्ट करने के लिए माँ को भी डांट लगाई। फिर बात करते-करते श्रेया को घर के बाहर ले गये।
बाहर खड़े कैक्टस में से एक पत्ती तोड़ बोले, "देखो! बेटा इसको भी चोट पहुँची न। पत्ती और पेड़ दोनों आँसू बहा रहे हैं न!"
--००--
22 June 2014
*एक उलझन और एक सुलझा हुआ जवाब *
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(संकल्प) (पिता लाडली) पिछले शीर्षक
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