Saturday 11 March 2017

भरा घाव -


"तुम भी न ,कैसे कैसे चित्र बनाते रहते हो !!"
"क्यों, अच्छा नहीं बना ?"
"नहीं बना तो अच्छा है! किन्तु नन्हें बच्चों के हाथ में इतनी मोटी किताब !! और अगल-बगल किताबों का पहाड़ | किसी बालिग छात्र की तस्वीर के साथ इतनी किताबें बनाते तो समझ भी आता कुछ |"
"अरे मेरी भोलीभाली एकमेव पत्नी , तू नन्हें नन्हें बच्चों के हाथों में किताब देख इतना परेशान हो गयी तो फिर वास्तव में बस्ते का बोझ अपने बच्चे पर कैसे लादेगी |"

यह सुनते ही सुरेखा की आँखे नम हो गयी | संजय को अपनी गलती का अहसास हुआ वह तुरंत बात बदलता हुआ बोला- " देख आजकल बच्चों पर उनके नन्हें से मन और सामर्थ्य से अधिक पढाई का बोझ है| मोटी किताबों को दिखाकर यह समस्या उठायी है मैंने | और ध्यान से देख चित्र में लड़के की तरफ रखी किताबों के ऊपर तोता बैठा है| और लड़की की तरफ किताब ज्यादा है पर तोता नहीं है!
समझी कुछ अब ?"

"हाँ , आपके कहने का मतलब है लड़की एक किताब ज्यादा पढ़ेंगी समझेंगी लेकिन र
ट्टू तोता नहीं बनेंगी | और लड़का ...!"
"लड़के मेरी तरह खुराफाती होते हैं किताब कम से कम पढ़ना चाहते हैं | सिर्फ इम्तहान में क्याँ क्याँ आयेगा उसे ही रट्टू तोते की तरह रटकर इम्तहान पास कर लेतें हैं |"
"अच्छा आप खुराफाती थे तभी चित्रकार बन गये !"
"और तू दिमागी थी तभी आज जिला सम्भाल रही है, और बीस साल से एक माँ की तरह मुझे भी |" कहकर पलंग पर बैठी अपनी पत्नी की गोद में सिर रखकर लेट गया |
"आप में अब भी बच्चा जिन्दा है फिर मुझे किस चीज की कमी है भला |" उसकी नम आँखों में प्यार का समुन्दर उमड़ पड़ा | संजय उसको बड़ी ध्यान से देखने लगा |
"ऐसे क्या देख रहे आप ?"
"एक दूसरे चित्र की रुपरेखा दिख रही मुझे तेरी इन आँखों में |" सविता मिश्रा

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