Saturday 25 November 2017

26वाँ अंतर्राज्यीय मिन्नी लघुकथा सम्मेलन- सिर्फ और सिर्फ सम्मेलन की बात - नो बकवास --:)

पंजाबी भाषा की मिठास और हिंदी का प्रवाहमय कड़कपन दोनों ने मिलकर ऐसा समा बाँधा की सुनने वाले धैर्य धारे बस सुनते ही रहें | न जाने कितने भाषा-भाषी (मातृभाषा) न जाने कितने रंग-बिरंगे सपने लेकर, पंजाब-हरियाणा-उत्तरप्रदेश- मध्यप्रदेश-आंध्र प्रदेश-राजस्थान-उत्तराखंड- हिमाचल प्रदेश न जाने कितने प्रदेश के लोग अपने-अपने स्थल की खुशबू लेकर उपस्थित हुए थें तो अकादमी भवन, आई.पी. 16, सैक्टर 14, पंचकूला को महकना ही था | पधारे अस्सी से सौ लेखकों ने इस सम्मेलन में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।
सभागार में विराजमान लोग






26वाँ अंतर्राज्यीय मिन्नी लघुकथा सम्मेलन 'अकादमी भवन' पंचकूला में होना निर्धारित हुआ । नाश्ता-पानी के बाद सभी सभागार में विराजमान हो चुके थे |
पहले सत्र में जब १२ बजे के आसपास कार्यक्रम शुरू हुआ तो सभी अतिथियों का सम्मान करने के बाद कहानी और मिन्नी कहानी के अन्तर को स्पष्ट करते हुए वरिष्ठों ने अपने विचार रखें।
इस सम्मेलन में साहित्य त्रिवेणी’ त्रैमासिक का लघुकथा विशेषांक (संपादक- कुमार वीर सिंह मार्तण्ड भैया, विशेषांक के अतिथि सम्पादक डॉ.अशोक भाटिया भैया ) ,’ दृष्टि’ लघुकथा- त्रैमासिक पत्रिका (सम्पादक अशोक जैन भैया ) पत्रिका ‘मिन्नी’ का अंक-117 और 'सपने बुनते हुए' (संपादक श्याम सुन्दर अग्रवाल अंकल, बलराम अग्रवाल भैया ) के विमोचन (जिसमें हमारी रचनाएँ भी उपस्थित हैं) के साथ कुछेक और किताबों का विमोचन किया गया।
'सपने बुनते हुए' का विमोचन
रीता साहनी भाभी जी को (बरेली) ‘ललिता अग्रवाल स्मृति सम्मान’ प्रदान किया गया। मनजीत सिद्धु भैया (रतनगढ़) और शोभा रस्तोगी दीदी (दिल्ली) को ‘लघुकथा किरण पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। समय -एक बजकर पांच मिनट पर |












पंजाबी मिन्नी कहानी पर प्रयास दीप्ती अंकल जी द्वारा तैयार की एक फिल्म भी दिखाई गई। जिसकी सीडी सबको पहले ही उपलब्ध कराई जा चुकी थी | व्यवस्था चाकचौबंद थी लेकिन किसी कारण बस बड़े पर्दे पर प्रोजेक्टर द्वारा नहीं दिखाई जा सकी , बीच में ही रुक जाने पर लैपटॉप का इस्तेमाल किया गया |
दोपहर भोजन और अन्य समय की ग्रुप फ़ोटो ..कहीं न कहीं से उठाई गयीं कुछ खुद के मोबाईल से...


दोपहर भोज के पश्चात लघुकथा सम्मेलन में रचना-पाठ एवं समीक्षात्मक टिप्पड़ी का दौर शुरू हुआ | पंजाब व हरियाणा के विभिन्न जिलों से पधारे लेखक, लेखिकाओं ने अपनी-अपनी लघुकथाओं का पाठ बड़े बढ़िया ढंग से किया और सुनने वाले शांति से ध्यान से सुनते रहें, दूसरों को भी सुनना, अपनी सुनाने के बाद खिसक लेने वाली प्रवृति नहीं दिखी यह बड़ी और ध्यान देने वाली बात भी इस समारोह में देखने को मिली | वैसे सब मजबूर भी थे शायद दूर-दूर से जो आए थे | खैर सराहनीय कार्य यह भी | वरना लोग मैं, मेरा में ही अटके रहते हैं | यहाँ भी दो चार अटके हुए दिखे लेकिन वह चुटकी भर थें | यहाँ तक की समीक्षाओं को भी बड़े गौर से सुना गया, यह और भी घोर आश्चर्य ही था |
पंजाबी भाषा की रचनाएँ हम बड़े ध्यान से सुनकर समझने की कोशिश करते रहें लेकिन पांच- दस परसेंट ही समझ आई बस यह समझ आ रहा था कि टॉपिक क्या है किसी किसी में वह भी समझ न आया | फिर समीक्षात्मक टिप्पड़ी की गयी जो घंटे तक चली | सुनने से ही लग रहा था कि बहुत अच्छा बोल रही हैं लेकिन दुर्भाग्य से हमें ही नहीं समझ आ रहा था |
हिंदी लघुकथा सत्र की कपिल भैया से शुरुआत हुई लेकिन श्यामसुन्दर अंकल द्वारा पहले ही क्रमवार लोग इस प्रकार थे ....
१ श्रीमती अन्तरा करवडे (मध्य प्रदेश)-अबोला,
२ अशोक दर्द (डल्हौजी)-उपयोग,
३ कपिल शास्त्री- हार-जीत
४ कान्ता राय भोपाल- सावन की झड़ी,
५ कुणाल शर्मा (करनाल) - अपने-अपने,
६ कुमार गौरव (बिहार)-हिचकी,
७ देवराज डडवाल (हिमाचल)- दो जून की रोटी,
८ नीता सैनी (दिल्ली)-राग-अनुराग,
९ डॉ नीरज सुधांशु (बिजनौर)-निक्कू नाच उठी,
१० नीलिमा शर्मा निविया (दिल्ली)-सुबह की चाय,
११ पंकज शर्मा- नई कमीज,
१२ पवन जैन- ज्ञान का प्रकाश,
१३ पवित्रा अग्रवाल (हैदराबाद)-खमियाजा,
१४ मधु जैन-आसक्ति ,
१५ राधेश्याम भारतीय (करनाल)-काला अध्याय,
१६ रूप देवगुण (सिरसा) -यात्रा के बीच में,
१७ रेखा तामकार राज-नयन सुख,
१८ लक्ष्मी नारायण अग्रवाल-मूँछ का ताव,
१९ डॉ लता अग्रवाल-बेबसी
२० विभा रश्मि-मौन शब्द,
२१ डॉ.शील कौशिक-स्वर्ग की दूरी,
२२ शोभा रस्तोगी -अंडेवाला,
२३ सतविन्द्र कुमार राणा- नजदीक की दूरी,
२४ सविता मिश्रा-सीमा,
२५ सीमा जैन-दूसरे की माँ

२६ सुरेन्द्र गुप्त -चंद्रग्रहण,
२७ डॉ. सुषमा गुप्ता-ब्रेकिंग न्यूज,
२८ स्नेह गोस्वामी-वह जो नहीं कहा,
२९ रणजीत टाडा-पहचान तलाशते रिश्ते
पंचकुला में 29 अक्टूबर, 2017 को इन सभी उन्तीस हिन्दी लघुकथाकारों द्वारा लघुकथाएँ पढ़ी गयी |
कुछ की समीक्षकों ने बहुत ज्यादा पसंद की तो एक दो को ज्यादा ही नसीहतें भी दी गयीं |
वैसे किसी को भी हिदायतें देने में गुरेज नहीं किया गया | अशोक भाटिया भैया ने जिसको बक्शा तो बलराम भैया ने उसका कान खींचा और बलराम भैया से वही छूटे, जिन्हें प्रसंशा में लिपटा कर कड़वी दवा अशोक भाटिया भैया पहले ही खिला चुके थें | कुल मिलाकर कुम्हार की भांति ठोका-सम्भाला दोनों जन ने | इस लिंक पर हमारे नकारे मोबाईल द्वारा वीडियो तैयार की हमने बड़ी मुश्किल से | क्योंकि आगे बैठे लोग मुंडी घुमा -घुमाकर परेशान कर दिए थे | लेकिन वीडियो बनाना था, ठान चुके थे अतः सफल रहे | आप सब भी देख सकते हैं इस लिंक पर जाकर ..
 https://www.youtube.com/watch?v=mUv_WAdGIZs&t=342sअशोक भाटिया भैया
https://www.youtube.com/watch?v=Lb6k0h8Nc9s बलराम भैया
और हाँ कहते-कहते यह भी कह दे कि अपनी लघुकथा सीमा भी पसंद आई कई लोगों को ..सभी का शुक्रिया इस माध्यम से भी ..इस पर जाकर आप सुन सकते हैं ...
https://www.youtube.com/watch?v=z8P_hGXrbQQ
हिंदी कथाओं और समीक्षा के बाद चाय पीने की घंटी बज चुकी थी | सभी बाहर जाने लगें |
फिर चाय और नाश्ता का दौर आपसी मेलमिलाप और वार्ता के बीच चला | उसके बाद फिर हॉल की ओर उन्मुख हुए सब | फिर से पंजाबी कथाओं का दौर शुरू होना था | लेकिन एक घंटे में ही जब सब एक-एक करके बाहर होने लगे थें | उसी बीच हम भी निकल आए | बाहर फोटोग्राफी चालू थी शरीक हो लिए | फिर बातचीत और खाना पानी रात का लिया गया |

लगातार 9 घंटे चला यह प्रोग्राम एक ऐतिहासिक कार्यक्रम के रूप में सम्पन्न होकर इतिहास रच गया होगा। इसके आगे-पीछे कोई इतिहास रहा होगा हमें नहीं पता | हमारे लिए तो यह पहला अनुभव था जो खुशगवार रहा |
हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी पंचकूला की ओर से किए गए प्रबंध को लेखकों ने खूब सराहा और साथ ही जगदीश भैया श्यामसुन्दर अंकल और उनकी बिटिया दीपशिखा का आतिथ्य सत्कार भी गजब का था | इतना बढ़िया प्रबंध तो आदमी शादी-व्याह में अपने रिश्तेदारों की भी नहीं कर पाता है जितना पंचकूला में लेखकों के लिए किया गया था |

पंचकूला की हरियाली ने मन तो मोहा ही था साथ ही यह भी जतला दिया कि अतिथि देवो भव का संस्कार कहते किसे हैं |
फ़िलहाल कुल मिलाकर पंचकूला की यात्रा यादगार रहेगीं | जब भी मेहमान-नवाजी की बात आएँगी पंचकूला का जिक्र जुबान पर अवश्य ही आएगा | पंजाबी त्रैमासिक ‘मिन्नी’ व ‘हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी’ के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 29.10.2017 को पंचकूला (हरियाणा) में आयोजित 26वाँ अंतर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन रात नौ साढ़े नौ बजे तक संपन्न हुआ।

फिर कार्यक्रम समाप्त होने के बाद जहाँ ठहरे थे वहां का रुख किया गया | पैदल ही अशोक दर्द भैया उनकी पत्नी, देवराज डडवाल भैया और उनकी पत्नी, नीता सखी, मनीषा और हम सब पैदल सैर करते हुए विश्नोई भवन पहुँचे | फिर थोड़ी बहुत वार्ता और सोना सुबह निकलना था भ्रमण पे कसौली |

आयोजकों और उनके सहयोगियों के हिस्से आयीं होंगी थकान, हम लाघुकथारों के हिस्से आई ढेर सारी मीठी यादें और सीखें | अब यह और बात है कि सम्मेलनों से सीखकर कितना आगे बढ़ पाते हैं | सभी को बधाई और आभार ..इती समाप्तम

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