Sunday, 22 May 2022

पहली समीक्षा😊 मुकेश तिवारी

 101, यह आंकड़ा शुभ और शगुन का होता है। इतनी ही लघुकथाओं से सजा एक संग्रह निकला है। इसका शीर्षक दिया गया है - #रोशनी_के_अंकुर

वरिष्ठ लघुकथाकार #श्रीमती_सविता #_मिश्रा_अक्षजा_(आगरा) द्वारा लिखी गई छोटी-छोटी कहानियां इस संग्रह में शामिल हैं।
बहुत दिन से इस संग्रह का इंतजार कर रहा था। आज जब यह हाथ में आया तो इसमें शामिल कई छोटी कहानियां तुरंत ही पढ़ डाली। इसे लेकर उत्सुकता इसलिए थी क्योंकि सविता जी की लघुकथाओं का मैं नियमित-सा पाठक हूं। मेरा उनसे संपर्क भी लघुकथाओं के माध्यम से ही हुआ है। उनकी लिखी कथाओं में भावपक्ष की मजबूती रहती है और आज के बदलते सामाजिक ताने-बाने को लेकर चिंता भी दिखाई देती है। घर-परिवार में चल रही स्थिति पर पक्की नजर और पकड़ भी उनकी लघुकथाओं में दिखाई देती है।
संग्रह में जहां से लघुकथाओं की शुरुआत हो रही वहां पहली उपस्थिति ही जोरदार है। मां अनपढ़ शीर्षक वाली लघुकथा बहुत कुछ कह रही है। फिर थोड़ा आगे बढ़ते ही सम्पन्न दुनिया कहानी आती है जहां आधुनिकता के बीच कमजोर होती इंसानियत का चित्रण है ।
संग्रह के पेज नंबर 135 पर फांस शीर्षक से आई लघुकथा को पढ़कर लगता है कि यह अपने शीर्षक और इसे जिस उद्देश्य से लिखा गया है दोनों को सार्थक कर रही है। बेटी, कर्मशक्ति, पछतावा, अस्त्र जैसी अनेक बढ़िया लघुकथाएं इस संग्रह में शामिल हैं । इन्हें पढ़कर महसूस होता है कि लघुकथाकार की नजर पारखी है और वह अपने आसपास व समाज में घट रही घटनाओं और हो रहे बदलाव पर लगातार नजर रखती हैं । हिंदी के साथ कई जगह मीठी क्षेत्रीय बोली ने भी संवाद के दौरान इन लघुकथाओं में जरूरत के मुताबिक मिठास घोली है।
आत्मकत्थ में सविता जी ने कहा है कि लघुकथा के क्षेत्र में खरगोश की तरह दौड़ते हुए नहीं कछुआ चाल से चलकर उन्होंने यह मंजिल हासिल की है। वह कछुआ चाल से ही सही साहित्य और लघुकथा के क्षेत्र में बड़ा मुकाम हासिल करें यही मेरी उनके लिए मंगल कामना है। ...मुकेश की लेखनी

No comments: