सविता मिश्रा ‘अक्षजा’ का लघुकथा संग्रह : ‘रौशनी के अंकुर’
चर्चा योग्य बिन्दुओं की पहचान और उन्हें समझने का प्रयास करने पर हर विषय अनूठा लगता है। संभवतः इसीलिए लघुकथा लेखन में नये-नये विषय सामने आ रहे हैं। दूसरी बात, इस प्रसंग में, कुछ विषयों, विशेषतः घर-परिवार और रिश्तों से जुड़े कथ्य लघुकथा में इसलिए भी प्रभावित कर रहे हैं कि ऐसे परिदृश्य से प्रभावित लोग लेखन में काफी संख्या में आये हैं। उनके अनुभव उनके अन्तर्मन के बहुत निकट हैं। अनेक लेखकों ने ऐसे कथ्यों को अपने लेखन की धार बनाया है, भले उनमें से कई कथा सौंदर्य और कुछ अन्य बिन्दुओं पर अपेक्षित परिश्रम न कर पाये हों। यद्यपि एक तथ्य यह भी है, जैसा मैं महसूस करता हूँ, यदि लघुकथा में कथ्य प्रभावित करता है तो बतौर पाठक शेष चीजों का मोह कुछ सीमा तक स्थगित किया जा सकता है। सविता मिश्रा ‘अक्षजा’ का सद्यः प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘रौशनी के अंकुर’ निश्चित रूप से पठनीय है। इन लघुकथाओं के कथ्य प्रभावित करते हैं और इस बात का प्रमाण हैं कि सविता जी ने अपने समय के यथार्थ को बहुत सकारात्मक दृष्टि से ग्रहण किया है और उसी सकारात्मकता को अपनी लघुकथाओं में बहुत सहजता से प्रतिबिम्बित किया है। उनकी लघुकथाओं में एक अच्छी चीज मुझे यह देखने को मिली कि पीढ़ी अन्तराल के विद्यमान यथार्थ को वह अपेक्षित यथार्थ से जोड़ने की पहल करती दिखाई देती हैं। इस बात का भी नोट लिया जाना चाहिए कि अपने व्यक्तित्व की सहजता-सरलता और स्पष्टवादिता को उन्होंने अपने सृजन में भी नहीं छोड़ा है। यदि वह कथा-सौंदर्य की ओर थोड़ा-सा ध्यान दे सकें, तो भविष्य में बहुत प्रभावशाली लघुकथाओं की उनसे अपेक्षा की जा सकती है। सविता बहन को इस संग्रह के लिए हार्दिक
बधाई
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