Thursday, 12 September 2013

दिल की बात -



उफ़ अपने दिल की बात बतायें कैसे
दिल पर हुए आघात अब जतायें कैसे !

दिल का घाव नासूर बना
अब मरहम लगायें कैसे
कोई अपना बना बेगाना
दिल को अब यह समझायें कैसे !

कुछ गलतफहमी ऐसी बढ़ी
बढ़ते-बढ़ते बढती ही गयी
रिश्तें पर रज-
सी जमने लगी
दिल पर पड़ी रज को हटायें कैसे !

उनसे बात हुई तो सही पर
बात में खटास दिखती रही

लगा वह हमें ही गलत ठहरा रहें
मानो बातों में हमें नीचा दिखा रहें
उनकी बातें लगी बुरी हमें पर
दिल पर पत्थर रख पायें कैसे !

पत्थर रख भी बात बढ़ायें हम
अपनापन जातयें पर टीस-सी रही
एक मन में लकीर-सी पड़ती गयी
अब उस लकीर को हटायें कैसे
दर्दे दिल समझाता रहा खुद को
पर इस दर्द को मिटायें कैसे !

अपनों ने ही ना समझा हमें
गैरों की क्या शिकवा करें
घमंडी साबित किया हमें
दुःख हुआ दिल को बहुत ही
बताओ हम इस दिल को समझायें कैसे
फिर टूटे हुए दिल को अब बहलायें कैसे !!

सविता मिश्रा 'अक्षजा'

1 comment:

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति...