Monday 2 June 2014

अपना जीवन-

जब निकले पापा मेरे लिए दूल्हा खोजने
सुन लड़कों के अरमान मन लगे मसोसने।


कोई बनना चाहता था आई.एस-पी.सी.एस.
और कोई चाहता था करना एमबीबीएस
बीवी चाहता था बी.ए.-एम.ए. पास
या फिर पद हो उसका कोई ख़ास
छोड़ा पापा ने उस लड़के की आस
क्योंकि मैं थी अभी बस दसवीं पास |

कोई बनना चाहता था बिजनेस-मैन
लगाकर पीले-नीले चश्मे नैन
रख लंबे घने भूरे बाल
चाहता बीवी फैशन-वाल
मान लिया पिता ने पहले तो
बाद में किया लड़के ने फेल जो
यही तो है शादी का एक घिनौना खेल
हर लड़की होती बड़ी इस दर्द को झेल |

काँटों भरे रास्ते पर चलना हुआ था दूभर
बेटी होने का दर्द चेहरे पर आया था उभर।
चाहते थे सास-ससुर,घर व लड़का
मिला नहीं कोई कही भी ढंग का
बोले कई नाते-रिश्तेदार
मेरे लड़के से ही कर दो यार
पापा को था नहीं  यह मंजूर
चाहते थे रिश्ते से हो कहीं दूर
लड़के के बाप को उटपटांग सीखा
किया कुछ अपनों ने ही धोखा
मांगो उनसे लाख-दो -लाख
है एक ही लड़की का बाप ।

दहेज का दानव विकराल हुआ
हर बेटी का बाप कंगाल हुआ।

खोज-खोजकर हुए थक के चूर
छिपा था अभी तक उनका नूर
खोजा प्रतापगढ़, इलाहाबाद एवं जौनपुर
तभी एक दोस्त ने नाम बताया ......पुर
लड़के के चेहरे की देख रौनक
खुशी से आई उनके चहरे पर चमक
गए अपने सारे पिछले दुःख-दर्द वह भूल
लड़का मिला ऐसा जैसे गुलाब का फूल |

लाखों में एक है बातें करते
रात भर चैन की नींद सोते ।

पापा ने की ऐसी वाणी ईजाद
है पुलिस आफिसर
रहा ना किसी को याद
हुई दोनों जन में कुछ मीठी गहमा-गहमी
लड़के के पिता ने जल्दी ही भर दी हामी
हो गयी अपनी तो सगाई
ससुर-जेठ एवं ननद जी आई
चढ़ गया तिलक एवं वरक्षा
पास हुई थी मैं बारहीं कक्षा ।
भटकते द्वार-द्वार हुए थे वह पसीने-पसीने
आज बजने के दिन आये थे ढोल-मंजीरे।
शादी की तारीख नजदीक आई
होने वाली थी अब मैं अपनों से पराई
पापा ने कहाँ-कहाँ नहीं मेरी किस्मत आजमाई
आज उनके लिए भी खुशी की थी आंधी आई |
गयी मैं अपनों से बिछुड़
जा गयी अनजानों से जुड़
पढ़ाई से शुरू हुई उनकी बात
पता ही ना चला कब हो गयी प्रभात
हर दिन-रात भय बहुत था लगता
आ जाती पापा-मम्मी की याद सता ।

माँ-बाप की छोटी सी गुड़ियाँ हो गयी थी बड़ी
ससुराल की दहलीज पर जैसे ही वह हुई खड़ी।

आता है अब अतीत का ख्याल
शादी को बीत गया है एक साल |
माता-पिता का हुआ था बोझ हल्का
मिल गया था बेटी के लिए दूल्हा मन का |

हर लड़की के जिन्दगी का है यही सार
मन को मारना पड़ता है कई-कई बार।

खेल यही !
लड़की की शादी खोजने से और होने तक का
बड़ा हाथ होता है इसमें लड़की के भी लक का |..सविता मिश्रा 'अक्षजा'

6 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

उम्दा रचना

दिगम्बर नासवा said...

ये तो अपने समाज का महत्वपूर्ण कर्म है ... हर किसी को इस कर्मकांड से गुज़ारना होता है ... सब कुछ ठीक तो यही कामना होती है ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

विभा दी सादर नमस्ते .....शुक्रिया दी आपका

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

दिगंबर भैया सादर नमस्ते .....शुक्रिया भैया आपका

Ranjana verma said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति !!

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

shukriya ranjana sis