Monday 16 June 2014

हायकू


१--तम हटता
पथ प्रदर्शक हो 
पिता हमारा |


२--स्नेह अपार

चुकाए कैसे कर्ज
भाग्य विधाता


३--उऋण कहा
कित्ती भी सेवा करो
पितृ ऋण से |

४--सजल नैन
बैठी जब डोली में
पिता लाडली |

५--द्युति पिता की

फैली चहुँ दिशाएं
मैं रत्ती भर |
  ....
.सविता मिश्रा

8 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

शुभ संध्या
एक से बढ़ कर एक बेजोड़ हाइकु
स्नेहाशिष

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

बहुत बहुत शुक्रिया दीदी ....शुभ रात्रि

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

बहुत बहुत शुक्रिया दीदी ....शुभ रात्रि

Rajput said...

बीएएचयूटी खूबसूरत हाइकु।

अंतिम हाइकु शायद बराबर नहीं है "उठाए डोली कहार" है , और प्रथम हाइकु की दूसरी लाइन मे भी थोड़ा दोष है ।

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

राजपूत भाई बहुत बहुत शुक्रिया .....ये और ए से भी ख़ास फर्क पड़ता है क्या ..सही करते है

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

राजपूत भाई बहुत बहुत शुक्रिया .....ये और ए से भी ख़ास फर्क पड़ता है क्या ..सही करते है

सहज साहित्य said...

सविता जी आप बहुत अच्छा लिख सकती हैं। आप अपने हाइकु इस मेल पर भेजिए-rdkamboj49@gmail.com

सस्नेह रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

शुक्रिया रामेश्वर भैया ..आप बड़े मार्गदर्शन करेगें तो कोशिश जारी रहेगी