Saturday 4 October 2014

दोगलापन (लघु कथा)

"कुछ पुण्यकर्म भी कर लिया करो भाग्यवान! सोसायटी की सारी औरतें कन्या जिमाती हैऔर तू है कि तुझमें कोई धर्म-कर्म है ही नहीं|"
"देखिये जी ! लोग क्या कहते हैंकरते हैंइससे मुझसे कोई मतलब ..."
बात को बीच में काटते हुए रमेश बोला- "हाँ-भई-हाँ! तू तो दूसरे ही लोक से आई हैमेरे कहने पर ही सहीथोड़ा अनुष्ठान कर लिया कर|"
अष्टमी के दिन सोसाइटी में बच्चों का शोर-शराबा सुनकर पति ने कहा तो
 बात मन में मंथन करती रही| न चाहते हुए भी उसने किलो-भर चना भिगो दिया|
नवमी पर दरवाजे की घंटी बजी| सामने छोटे-छोटे बच्चों में लडकियाँ कम लड़के अधिक दिखे| किसी को मना न कर सबको अंदर बुलाया| आसन पर बैठाकर प्यार से भोजन परोसने लगी तो चेहरे पर नजर गयी| किसी की नाक बह रही थीतो किसी के कपड़ो से गन्दी-सी बदबू आ रही थी| मन खट्टा-सा हो गया उसकाकिसी तरह शिखा ने दक्षिणा देकर उन सबको विदा किया|
"देखो जी कहें देती हूँ ! इस बार तो आपका मन रख लियापर अगली बार भूले से मत कहना..इतने गंदे बच्चे ! जानते होएक तो नाक में ऊँगली डालने के बाद उसी हाथ से खाना खायी| छी ! मुझसे ना होगा यह..! ऐसा लग रहा था कन्या नहीं खिला रही बल्कि...! भाव कुछ और हो जाय तो क्या फायदा ऐसी कन्या-भोज काअतः मुझसे उम्मीद मत ही रखना|" तड़-तड़कर शब्दों का पुलिंदा पति पर फेंकती गयी और बेबस पति धैर्य पूर्वक  सुनने के पश्चात बोला-
"अच्छा बाबाजो मर्जी आये करोबस सोचा नास्तिक से तुझे थोड़ा आस्तिक बना दूँ|"
"मैं नास्तिक नहीं हूँ जी। बस यह ढोंग मुझसे नहीं होता हैसमझे आप|"
"अच्छा-अच्छादूरग्रही प्राणी...!" हाथ जोड़कर रमेश ने जब यह कहा तो घर में खिलखिलाहट गूँज पड़ी|
सुधा ने बाहर मिलते ही सवाल दागा- "यार तेरी मुराद पूरी हो गयी क्या ? बाहर तक हँसी सुनाई दे रही थी|"
मिसेज श्रीवास्तव ने मुँह बनाकर कहा- "हम इन नीची बस्ती के गंदे बच्चो को कितने सालों से झेल रहे हैंपर नवरात्रे में ऐसे ठहाके नहीं गूँजे...! बता तोहँसी की सुनामी क्यों आयी थी?"
शिखा मुस्कराकर बोली- "क्योंकि मैं मन-कर्म और वचन से एक हूँ|"
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सविता मिश्रा
 "अक्षजा'
 आगरा  
 
2012.savita.mishra@gmail.com        

Savita Mishra
6 अक्तूबर 2014 · 
बदलकर दुसरे शीर्षक से यह वर्ड  फ़ाइल में है ...९/९/२०१९ को बदला ..करेक्शन नहीं किया यहाँ 

3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

बढ़िया ।

Unknown said...

बहुत ही उमदा बहन

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही बढ़िया ...