"कुछ पुण्यकर्म भी कर लिया करो भाग्यवान!
सोसायटी की सारी औरतें कन्या जिमाती है, और तू है कि
तुझमें कोई धर्म-कर्म है ही नहीं|"
"देखिये जी ! लोग क्या कहते हैं, करते हैं, इससे मुझसे कोई मतलब ..."
बात को बीच में काटते हुए रमेश
बोला- "हाँ-भई-हाँ! तू तो दूसरे ही लोक से आई है| मेरे कहने पर ही सही, थोड़ा अनुष्ठान कर लिया कर|"
अष्टमी के दिन सोसाइटी में बच्चों का शोर-शराबा सुनकर पति ने कहा तो बात मन में मंथन करती रही| न चाहते हुए भी उसने किलो-भर चना भिगो दिया|
अष्टमी के दिन सोसाइटी में बच्चों का शोर-शराबा सुनकर पति ने कहा तो बात मन में मंथन करती रही| न चाहते हुए भी उसने किलो-भर चना भिगो दिया|
नवमी पर दरवाजे की घंटी बजी|
सामने छोटे-छोटे बच्चों में लडकियाँ कम लड़के अधिक दिखे| किसी को मना
न कर सबको अंदर बुलाया| आसन पर बैठाकर प्यार से भोजन परोसने लगी तो चेहरे पर नजर
गयी| किसी की नाक बह रही थी, तो
किसी के कपड़ो से गन्दी-सी बदबू आ रही थी| मन खट्टा-सा हो गया
उसका| किसी तरह शिखा ने दक्षिणा देकर उन सबको विदा किया|
"देखो जी कहें देती हूँ ! इस बार तो आपका मन रख लिया, पर अगली बार भूले से मत कहना..| इतने गंदे बच्चे ! जानते हो, एक तो नाक में ऊँगली डालने के बाद उसी हाथ से खाना खायी| छी ! मुझसे ना होगा यह..! ऐसा लग रहा था कन्या नहीं खिला रही बल्कि...! भाव कुछ और हो जाय तो क्या फायदा ऐसी कन्या-भोज का| अतः मुझसे उम्मीद मत ही रखना|" तड़-तड़कर शब्दों का पुलिंदा पति पर फेंकती गयी और बेबस पति धैर्य पूर्वक सुनने के पश्चात बोला-
"देखो जी कहें देती हूँ ! इस बार तो आपका मन रख लिया, पर अगली बार भूले से मत कहना..| इतने गंदे बच्चे ! जानते हो, एक तो नाक में ऊँगली डालने के बाद उसी हाथ से खाना खायी| छी ! मुझसे ना होगा यह..! ऐसा लग रहा था कन्या नहीं खिला रही बल्कि...! भाव कुछ और हो जाय तो क्या फायदा ऐसी कन्या-भोज का| अतः मुझसे उम्मीद मत ही रखना|" तड़-तड़कर शब्दों का पुलिंदा पति पर फेंकती गयी और बेबस पति धैर्य पूर्वक सुनने के पश्चात बोला-
"अच्छा बाबा, जो
मर्जी आये करो, बस सोचा नास्तिक से तुझे थोड़ा आस्तिक
बना दूँ|"
"मैं नास्तिक नहीं हूँ जी। बस यह ढोंग मुझसे
नहीं होता है, समझे आप|"
"अच्छा-अच्छा, दूरग्रही
प्राणी...!" हाथ जोड़कर रमेश ने जब यह कहा तो घर में खिलखिलाहट गूँज पड़ी|
सुधा ने बाहर मिलते ही सवाल दागा-
"यार तेरी मुराद पूरी हो गयी क्या ? बाहर तक हँसी सुनाई दे रही थी|"
मिसेज श्रीवास्तव ने मुँह बनाकर
कहा- "हम इन नीची बस्ती के गंदे बच्चो को कितने सालों से झेल रहे हैं, पर नवरात्रे में ऐसे ठहाके नहीं गूँजे...! बता तो, हँसी की सुनामी क्यों आयी थी?"
शिखा मुस्कराकर बोली- "क्योंकि
मैं मन-कर्म और वचन से एक हूँ|"
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सविता मिश्रा "अक्षजा'
आगरा
2012.savita.mishra@gmail.com
Savita Mishra
6 अक्तूबर 2014 ·
बदलकर दुसरे शीर्षक से यह वर्ड फ़ाइल में है ...९/९/२०१९ को बदला ..करेक्शन नहीं किया यहाँ
बदलकर दुसरे शीर्षक से यह वर्ड फ़ाइल में है ...९/९/२०१९ को बदला ..करेक्शन नहीं किया यहाँ
3 comments:
बढ़िया ।
बहुत ही उमदा बहन
बहुत ही बढ़िया ...
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