Saturday 24 January 2015

"आस "( laghukatha)

"आस "
गोदाम में बिखरे दानों को देख अचानक भीखू को माँ की सीख याद आ गयी - ' बेटा अन्न का आदर करना चाहिए |' ...ये अमीर लोग क्या जाने इन दानों की कीमत? यह तो कोई मुझसे पूछे, जिसके पेट में सुबह से शाम हो गई पर अन्न का एक दाना भी नहीं पहुंचा है ..|
दोस्त ने कहा था कि मोटा गैंडा काम खूब कराता है, पर रूपये देने में आना-कानी नहीं करता, ऊपर से वहां पर गिरे अनाज घर ले जाने को बोल देता है| बस इसी आस में आज इस सेठ के गोदाम में आ गया ..... |
फैले हुए दानों को देख भीखू खुश हो मन ही मन बोला -'आज माँ भूखी न सोयेंगी |' झाड़ू मारते-मारते भीखू सोच ही रहा था..... |
तभी कानो में एक कर्कश आवाज गूंजी "अबे जल्दी जल्दी हाथ चला खाया नहीं है क्या?"
सुनते ही आँखों से झर-झर आंसू बहने लगे|
"अरे क्या हुआ .....काम नहीं होता तो फिर क्यों आया?"
"सेठ जी सुबह से कुछ नहीं खाया, माँ कल रात में चावल का माड़ पिला सुला दी थी ..घर में एक दाना भी नहीं है..|"
"ओह तो ये बात है, ले खा ले आज सेठाइन ने ज्यादा ही खाना भेजा है ..तू भी खा ले और हाँ, खाकर अच्छे से साफ़ सफाई करना भले कितनी भी देर हो जाये|"
ख़ुशी ख़ुशी भीखू बोला-"जी सेठ जी" अब उसके हाथ फुर्ती से चलने लगे ,खाना मिलने की "आस" जो जग गयी थी| ........सविता मिश्रा

No comments: