Sunday 31 January 2016

माता

"अरे ओ! ठहर |" सुरक्षाकर्मी के आवाज लगाते ही वह आकृति स्टेच्यु के जैसी खड़ी हो गयी |
"ऐसे कैसे यह हाथ में सूखी रोटी पकड़े, इन दो बच्चों को गोद में उठाए, यहाँ चली आ रही है | जानती नहीं है! यह राजपथ है |"
"जानती हूँ ! मेरे कुछ बच्चे भूखे हैं, अतः उनके लिए अमीर-घरों से रोटियाँ माँगकर इकठ्ठी कर लायी हूँ | कूड़े की ढेर पर पड़ी इस अनाथ बच्ची को उठा लिया मैंने, पालूँगी इसे | जैसे सब बच्चों को पाल रही हूँ !”
“और इतने तुड़े-मुड़े झंडे ?”
“देश के सम्मान का प्रतीक तिरंगा ! यहीं राजपथ पर ही बिखरा धूलधुसरित हो रहा था | कैसे अपमान होते देखती! अतः उठाकर सहेज लिया मैंने ...|"
"हैं कौन रे, तू "
“मैं ! "मैं भारत माता हूँ |"
"तूss हाँ ! हाँ ! और भारत माताss ...| हाथ में झंडा होने से भारत माता हो गयी क्या |" हँसी उड़ाते हुए सुरक्षाकर्मी ने कहा |
"क्यों, शर्मिंदगी हुई क्या यह सुनकर?
"यार विवेक! देख इसे, फटेहाल अपनी भारत-माता |" जोर का ठहाका लगाते हुए सुरक्षाकर्मी अपने दोस्त को आवाज लगाकर बोला |
"अब भी कोई शक है, क्या तुम्हें ?"
"नहीं ! नहीं ! माता ! पर यहाँ कैसे, और यह चेहरा क्यों ढक रक्खा है आपने ?" व्यंग्य भरे स्वर में सुरक्षाकर्मी पूछ बैठा |
"यहाँSS ! नेताओं के गिरगिटी रंग देखने आई हूँ ! और चेहरे से पर्दा उठा दिया न, तो और भी शर्मिंदा होने के साथ-साथ डर भी जाओंगे बेटे |"
"क्यों भला ?" बेपरवाही से वह बोला |
"क्योंकि कुदृष्टि डाली थी किसी ने | मेरे विरोध करने पर एसिड फेंक दिया मुझपर, नक्शा बिगड़ गया है मेरा |" दुःख भरी आवाज में कहा उसने |
"क्या बहस कर रही है यह 'बुढ़िया' ? भागाओ इसे इधर से | नेताओं का आना शुरू हो चुका है | किसी की नजर तुम पर पड़ी तो नौकरी से जाओगे |" दूसरा साथी गुस्से में आदेशात्मक स्वर में चीखा |
"पागल है यार ! बस अभी हटा रहा हूँ ..|"
"भारत माता, आप जरा कृपा करेंगी!! जो उधर कुर्सिया रक्खी है, वहाँ जाकर विराजेंगी | आप ऐसे यहाँ इस अवस्था में खड़ी रहीं तो मेरी नौकरी चली जाएगी माता |" कुटिल हँसी हँसते हुए वह सुरक्षाकर्मी बोला |
"हाँ बेटा, क्यों नहीं ? माँ बच्चों के लिए गूंगी-बहरी-अंधी सबकुछ बनी रह सकती है |
“जी माता ! आप कृपा करें !” यह कह हँसकर वहाँ से जाने को हुआ कि– “बस मेरे बच्चें सही सलामत रहें | परन्तु बच्चों को कुछ हुआ तो...! बुढ़िया की तेज तीखी आवाज़ सुरक्षाकर्मी के कान से टकराई |
ध्वजारोहण के साथ उसका चेहरा खुल गया था | सुरक्षाकर्मी ने पलटकर देखा तो उसकी आँखे और चेहरा दोनों ही आग उगल रहे थे |
--००--
सविता मिश्रा ‘अक्षजा’
26 January 2015 at 06:03

2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

आज की स्थिति का सही आंकलन ... कौन पहचाने भारत माँ की पुकार ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

~गूंगी बहरी माता~~

" ' कौन है रे तू ' //ये राजपथ है ऐसे कैसे मुहं ढके चली आ रही है | "
' मैं '-- "मैं भारत माता हूँ"
"तू और भारत माता " ..जोर का ठहाका लगाते हुय सुरक्षाकर्मी बोला
क्यों शर्मिंदगी हुई क्या सुन के ? मेरे बच्चे भूखे है अतः रोटी लिय जा रही हूँ ,और कई बच्चे अनाथ है और ये बच्ची कूड़े की ढेर पर थी अतः कमर में लटका रक्खा है मैं पालूंगी इसे । जैसे सब अनाथ बच्चों को पाल रहीं! और देश का प्रतिक यही राजपथ पर ही बिखरा था कैसे अपमान होते देखती अतः उठा सहेज लिया मैने ... " "अब भी कोई शक है क्या तुम्हें ?"
"नहीं ..नहीं माता , पर यहाँ कैसे और यह मुहं क्यों ढक रक्खा है ?"
"यहाँ नेताओं के गिरगिटी रंग देखने आई हूँ और मुहं से पर्दा उठा दिया तो और भी शर्मिंदा होने के साथ साथ डर भी जाओगें बेटे|"
"क्यों भला ?"
क्योकि कुदृष्टि डाली थी किसी ने और मेरे विरोध करने पर एसिड फेंक दिया , नक्शा बिगड़ गया है मेरा|
" क्या बहस कर रही है 'बुढ़िया' ? भागाओ इसे , इधर से नेताओं का आना शुरू हो चूका है, किसी की नजर पड़ी तो नौकरी से जाओगें | " दूसरा साथी गुस्से में बोला
"पागल है यार ! बस अभी हटा रहा हूँ "
"भारत माता- आप जरा कृपा करेगी और जो कुर्सिया रक्खी है वहां विराजेंगी |" कुटिल हंसी हँसते हुय बोला ..
" हाँ बेटा, क्यों नहीं ? माँ बच्चो के लिए गूंगी-बहरी - अंधी बनी रह सकती है, बस मेरे बच्चें सही सलामत रहें , परन्तु बच्चों को कुछ हुआ तो.....! " आँखे अब आग उगल रहीं थी । सविता मिश्रा