Monday 17 October 2016

सबक ~


भोर सी मुस्कराती हुई भाभी साज सृंगार से पूर्ण अपने कमरे से निकली।
"अहा भाभी, आज तो आप नयी नवेली दुल्हन सी लग रही हैं, कौन कहेगा शादी को आठ साल हो गए हैं।" ननद ने अपनी भाभी को छेड़ा।
"हाँ! आठ साल हो गए पर खानदान का वारिस अब तक न जन सकी।" सास ने मुँह बिचका दिया।
"माँ, भी न ! जब देखो भाभी को कोसती रहती हैं। सोचते हुए वह भाभी की और मुखातिब हुई- "भाभी मैं आपके कमरे में बैठ जाऊँ? मुझे 'अधिकारों की लड़ाई' पर लेख लिखना है।"
"सुन सुधा, सुन तो! तू माँ के ....|" भाभी की बात अधूरी रह गयी थी और वह कमरे में जा पहुँची थी।
"भाभी यह क्या ? आपका तकिया भीगा हुआ है। किसी बात पर लड़ाई हुई क्या भैया से !"
"वह रात थी सुधा, बीत गयी। सूरज के उजाले में तू क्यूँ पूरी काली रात देखना चाह रही है।"
"काली रात का तो पता नहीं भाभी! परन्तु रात का स्याह अपनी छाप तकिये पर छोड़ गया है और इस स्याह में भोर सा उजास आप ही ला सकती हैं।"
सुधा अनायास ही गंभीर हो गयी थी और इधर उसका लेख 'अधिकारों की लड़ाई' भाभी के दिमाग में सबक बन कौंध रहा था।
--००---
#सविता
रात विषय आधारित इस लिंक पर
https://www.facebook.com/groups/540785059367075/permalink/991128497666060/

(जिंदगीनामा:लघुकथाओं का सफर में रात विषय पर आधारित करके लिखा १६ अक्तूबर २०१६ में )

3 comments:

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 18 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Unknown said...

बहुत खूब

Unknown said...

Bahut sundar