किसी के दिल को छू जाए ऐसा कोई भाव लिखने की चाहत ..कोई कवियत्री नहीं हैं हम | अपने भावों को शब्दों का अमलीजामा पहनाते हैं बस .:)
Sunday, 16 December 2012
बस यूँ ही
कंटीली वादियों में फूल ढूढ़ रहे थे नामुमकिन था मुमकिन कर रहे थे | सविता मिश्रा दम्भ ===== कांटे को फूल समझने की भूल ना कीजिय , चूहे है आप अदना शेर का दंभ ना भरा कीजिये| सविता मिश्रा
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