तुझे समझना चाहा था मगर
समझ पाती तो क्या बात थी|
कहने को तो अपने थे तुम पर
अपना बना पाती तो क्या बात थी|
भटकते हैं सभी अपने जूनून के चलते
मैं खुद को भटकने से बचा पाती तो क्या बात थी|
मुर्दे हैं जो सभी यत्र-तत्र बिखरे हुए
उन्हें जिन्दा कर पाती तो क्या बात थी|
झूठी फरेबी इस दुनिया में सविता
अपनी बात सच्चाई से रख पाती तो क्या बात थी|
सो रहें हैं जो अपने आँख-कान बंद कर
उन्हें अपनी आवाज से उठा पाती तो क्या बात थी|
प्रभु सुनती हूँ तू हैं हर कहीं, हर किसी में
मैं भी तुझे किसी इंसा में देख पाती तो क्या बात थी|
बहुत कुछ कहना सुनना हैं तुझसे
तुझसे एक बार मैं मिल पाती तो क्या बात थी|
मन्दिरों में ढूढ़ने से अच्छा ओ मेरे भोले
खुद में ही तुझको बसा पाती तो क्या बात थी|...सविता मिश्रा
समझ पाती तो क्या बात थी|
कहने को तो अपने थे तुम पर
अपना बना पाती तो क्या बात थी|
भटकते हैं सभी अपने जूनून के चलते
मैं खुद को भटकने से बचा पाती तो क्या बात थी|
मुर्दे हैं जो सभी यत्र-तत्र बिखरे हुए
उन्हें जिन्दा कर पाती तो क्या बात थी|
झूठी फरेबी इस दुनिया में सविता
अपनी बात सच्चाई से रख पाती तो क्या बात थी|
सो रहें हैं जो अपने आँख-कान बंद कर
उन्हें अपनी आवाज से उठा पाती तो क्या बात थी|
प्रभु सुनती हूँ तू हैं हर कहीं, हर किसी में
मैं भी तुझे किसी इंसा में देख पाती तो क्या बात थी|
बहुत कुछ कहना सुनना हैं तुझसे
तुझसे एक बार मैं मिल पाती तो क्या बात थी|
मन्दिरों में ढूढ़ने से अच्छा ओ मेरे भोले
खुद में ही तुझको बसा पाती तो क्या बात थी|...सविता मिश्रा
3 comments:
यदि खुद में ही भगवान ढूंढ लें तो क्या बात हो ... बहुत सुंदर गज़ल
बहुत सुंदर !
एक सुझाव है अच्छा लगे तो करियेगा !
थोड़ा सा फोंट साईज बड़ा कर देंगी तो पढ़ना और आसान हो जायेगा और एक ही रंग में रखिये अंतिम पंक्तिया आसानी से पढी़ जा रही हैं ।
संगीता दी नमस्ते आभार दिल से आपका
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