Friday 28 March 2014

उदारता है या मूर्खता

हम भारतीय छले जाने पर भी फिर से छलने को तैयार रहते हैं यह हमारी उदारता है या मूर्खता हमारी ..पर गर्व होता है कभी कभी क्योंकि  इसी आदत के चलते तो हम सब इंसान दूसरों से प्यार करते हैं  जबकि कहीं न कहीं एक मन डरता भी है कि कहीं धोखा तो नहीं खा जायेगें क्योंकि  इंसानी फितरत बखूबी जानते है....

धोखा देना इंसानों की फितरत है
धोखा खाना हमारी पड़ी आदत है

इस खाने और देने के हुजूम में
किसी को कोई नहीं दिक्कत है

तू कर हम आते हैं पीछे-पीछे
अब तो ऐसी ही दिली चाहत है |..सविता ..


मन जिधर कहें उधर मारो ठप्पा
कांग्रेस-सपा-बसपा या हो भाजपा
मन से अपने मन की सुनना
फिर उसको मन से ही गुनना
मन खुद ही चीख बोल उठेगा
भला अपना न देख खून खौल उठेगा
गुनने को समय कम ही बचा है
वोट ना देना भी तो एक खता है
वोट देकर आओ सब ही इसबार
नोटा ही दबाना पड़े चाहे यार | सविता

8 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सविता जी रचना अच्छी है । माफ करेंगी टंकण में वर्तनी की गलतियाँ हैं । ठीक कर लें । जैसे क्यूँकी,मूर्खता आदि ।

विभा रानी श्रीवास्तव said...

बहुत बहुत अच्छी बात लिखती हो
हार्दिक शुभकामनायें

संजय भास्‍कर said...

सुंदर शब्दों में वर्णित किया है ! बढ़िया रचना....सविता जी

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

सुशील भैया नमस्ते .....अभी करते है ...आभार भैया

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

विभा दी दिल से आभार आपका

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

संजय भैया आभार आपका

दिगम्बर नासवा said...

किसी दूसरे के लिए अपनी आदत को क्यों बदलना ... हाँ सबक जरूर लेना चाहिए ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

दिगम्बर भैया नमस्ते .....आभार आपका दिल से ...सही कहा आपने