Wednesday 23 April 2014

हाइकु

तृष्णा जागती
धन छोड़ ज्ञान में
बनता नेक |

वर्षा की कमी
कंक्रीट का शहर
प्यासे है खग |

खग कल्पते
भटकते अटारी
जल विहीन |

बगैर जल
कपोल कल्पित है
जीवन जीना |

तृष्णा मिलन
दूर बैठे सनम
प्यार बढ़ता |

तृष्णा जागती
प्यास कब बुझती
अथाह चाह |.
.सविता मिश्रा 'अक्षजा'

13 comments:

दिगम्बर नासवा said...

वाह ... लाजवाब हैं सभी हाइकू ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

दिगम्बर भैया नमस्ते ........बहुत बहुत शुक्रिया आपका ....कोई कमी भी लगे तो निसंकोच बताया करिए ....क्योकि शाबासी के साथ समालोचना भी तो जरुरी है ..वर्ना सब सही ही मानने का भ्रम हो जायेगा

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर !

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

सुशील भैया शुक्रिया दिल से

Sadhana Vaid said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति ! सुंदर हाईकू !

Sadhana Vaid said...
This comment has been removed by the author.
सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

sadhana sis shukriya apka bahut bahut

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर हाइकु..

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

कैलाश भैया सादर आभार आपका ..__/\__

Suresh Mishra (सुरेश मिश्र) said...

''............
बगैर जल
कपोल कल्पित हैं
जीवन जीना .....''
बहुत सुन्दर .......प्रत्येक शब्द दिल की गहराइओं को छूते हैं ....आपको बधाई !

Dr. pratibha sowaty said...

शानदार हाइकू

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

सुरेश भैया सादर नमस्ते .......बहुत बहुत शुक्रिया आपका

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

प्रतिभा sis शुक्रिया दिल से