माँ
किसनी के आँखों में हमेशा ही पानी भरा रहता था, जो रह-रहकर छलक जाता था | क्योंकि अपने सालभर के बच्चे के पेट की आग बुझाने के लिए उसके पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी | उस दिन वह भूख से बिलबिलाते गिल्लू को डांट रही थी | पड़ोस की दो औरतें रोना-चिल्लाना सुनकर दरवाजे तक आ पहुँची थी |
“किसनी ! वो क्या पिएगा | तेरे आँचल का दूध तो अब उसके लिए ऊँट मुँह में जीरा-सा है |” सुनकर किसनी बोली कुछ नहीं बस आँसू बहाती रही |
“देख ! हाथ-पैर मारता हुआ फिर भी छाती से चिपका इसकी ठठरी को चूसे जा रहा है |” यह कहते हुए दूसरी पड़ोसन ने पहली पड़ोसन की बात का पुरजोर समर्थन किया|
“परसों किसी शराबी के साथ गयी थी | उसने कुछ दिया नहीं तुझे ?” दूसरी पड़ोसन ने दरवाजे से ही दहाड़ लगाई |
“जो दिया, उससे कहाँ पूरी हो रही है, दो जून की रोटी की कमी |” किसनी की मरी-सी आवाज़ उन दोनों के कानों से टकराई|
“हाँ ! बिकने वाली हर चीज सस्ती जो आँकी जाती है | औरत की मज़बूरी को सब साले तड़ लेते हैं न |” पहली पड़ोसन ने घृणापूर्वक जमीन में थूंकते हुए कहा |
मजमून भांपते ही उधर से गुजरता एक दलाल ठहर गया | वह तो ऐसी मजबूर गरीब माँ की ताक में ही उस गली के चक्कर महीने, दो महीने में लगा लेता था | देहरी पर आकर बोला - "किसनी! क्यों न अमीर परिवार के हवाले कर दे तू इसको ? वहां खूब आराम से रहेगा | दो लोग हैं मेरी नज़र में, जो बच्चे की तलाश में हैं | तू कहे तो बात करूँ?"
“मेरा यही सहारा है, ये चला जायेगा तो मर ही जाऊँगी मैं तो |” ममता में तड़पकर किसनी ने सीने से चिपका लिया गुल्लू को !
दलाल के द्वारा खूब समझाने पर गुल्लू के भविष्य के खातिर आख़िरकार किसनी राजी हो गयी | पड़ोसनों के उकसाने पर शर्त भी रखी कि उस घर में वो लोग नौकरानी ही सही उसे जगह देंगे तब |
दलाल की कृपा से आज किसनी को भर पेट भोजन मिलने लगा था, तो छाती में दूध भी उतरने लगा | परन्तु अब गुल्लू को छाती से लगाने के लिए तरस जाती थी किसनी | गुल्लू कभी दूध की बोतल, कभी खिलौने लिए अपनी नयी माँ की गोद से ही चिपका रहता था|
“तेरे उजले भविष्य के खातिर ये भी सही, माँ हूँ न |” कहकर आँखों से बहती अविरल धारा को किसनी ने रोक लिया |
“किसनी ! वो क्या पिएगा | तेरे आँचल का दूध तो अब उसके लिए ऊँट मुँह में जीरा-सा है |” सुनकर किसनी बोली कुछ नहीं बस आँसू बहाती रही |
“देख ! हाथ-पैर मारता हुआ फिर भी छाती से चिपका इसकी ठठरी को चूसे जा रहा है |” यह कहते हुए दूसरी पड़ोसन ने पहली पड़ोसन की बात का पुरजोर समर्थन किया|
“परसों किसी शराबी के साथ गयी थी | उसने कुछ दिया नहीं तुझे ?” दूसरी पड़ोसन ने दरवाजे से ही दहाड़ लगाई |
“जो दिया, उससे कहाँ पूरी हो रही है, दो जून की रोटी की कमी |” किसनी की मरी-सी आवाज़ उन दोनों के कानों से टकराई|
“हाँ ! बिकने वाली हर चीज सस्ती जो आँकी जाती है | औरत की मज़बूरी को सब साले तड़ लेते हैं न |” पहली पड़ोसन ने घृणापूर्वक जमीन में थूंकते हुए कहा |
मजमून भांपते ही उधर से गुजरता एक दलाल ठहर गया | वह तो ऐसी मजबूर गरीब माँ की ताक में ही उस गली के चक्कर महीने, दो महीने में लगा लेता था | देहरी पर आकर बोला - "किसनी! क्यों न अमीर परिवार के हवाले कर दे तू इसको ? वहां खूब आराम से रहेगा | दो लोग हैं मेरी नज़र में, जो बच्चे की तलाश में हैं | तू कहे तो बात करूँ?"
“मेरा यही सहारा है, ये चला जायेगा तो मर ही जाऊँगी मैं तो |” ममता में तड़पकर किसनी ने सीने से चिपका लिया गुल्लू को !
दलाल के द्वारा खूब समझाने पर गुल्लू के भविष्य के खातिर आख़िरकार किसनी राजी हो गयी | पड़ोसनों के उकसाने पर शर्त भी रखी कि उस घर में वो लोग नौकरानी ही सही उसे जगह देंगे तब |
दलाल की कृपा से आज किसनी को भर पेट भोजन मिलने लगा था, तो छाती में दूध भी उतरने लगा | परन्तु अब गुल्लू को छाती से लगाने के लिए तरस जाती थी किसनी | गुल्लू कभी दूध की बोतल, कभी खिलौने लिए अपनी नयी माँ की गोद से ही चिपका रहता था|
“तेरे उजले भविष्य के खातिर ये भी सही, माँ हूँ न |” कहकर आँखों से बहती अविरल धारा को किसनी ने रोक लिया |
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http://www.rachanakar.org/2014/11/blog-post_294.html रचनाकार वेब पत्रिका में छपी हुई |
नया लेखन ग्रुपमें लिखी हुई |
थोड़े चेंज के साथ
10 comments:
सुंदर ।
बहुत बहुत शुक्रिया सुशील भैया आपका तहेदिल से
एक माँ ही बच्चे के लिए कुछ भी कर सकती है...बहुत मर्मस्पर्शी कहानी..
सार्थक सुंदर कहानी
आंचल में दूध आंख में पानी भरा है
सार्थक मर्मस्पर्शी कहानी....!!
कैलाश भैया आभार आपका दिल से ..._/\_
आभार विभा दी आपका दिल से ..._/\_
संजय भाई आभार आपका दिल से :) :)
बहुत सुन्दर बहन मजबूर माँ और क्या करती.....नमस्कार बहन
बहुत बहुत आभार तनुज भैया _/\_
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