Thursday 4 September 2014

दो जून की रोटी

माँ 
किसनी के आँखों में हमेशा ही पानी भरा रहता था, जो रह-रहकर छलक जाता था | क्योंकि अपने सालभर के बच्चे के पेट की आग बुझाने के लिए उसके पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी | उस दिन वह भूख से बिलबिलाते गिल्लू को डांट रही थी | पड़ोस की दो औरतें रोना-चिल्लाना सुनकर दरवाजे तक आ पहुँची थी |
“किसनी ! वो क्या पिएगा | तेरे आँचल का दूध तो अब उसके लिए ऊँट मुँह में जीरा-सा है |” सुनकर किसनी बोली कुछ नहीं बस आँसू बहाती रही |
“देख ! हाथ-पैर मारता हुआ फिर भी छाती से चिपका इसकी ठठरी को चूसे जा रहा है |” यह कहते हुए दूसरी पड़ोसन ने पहली पड़ोसन की बात का पुरजोर समर्थन किया|
“परसों किसी शराबी के साथ गयी थी | उसने कुछ दिया नहीं तुझे ?” दूसरी पड़ोसन ने दरवाजे से ही दहाड़ लगाई |
“जो दिया, उससे कहाँ पूरी हो रही है, दो जून की रोटी की कमी |” किसनी की मरी-सी आवाज़ उन दोनों के कानों से टकराई|
“हाँ ! बिकने वाली हर चीज सस्ती जो आँकी जाती है | औरत की मज़बूरी को सब साले तड़ लेते हैं न |” पहली पड़ोसन ने घृणापूर्वक जमीन में थूंकते हुए कहा |
मजमून भांपते ही उधर से गुजरता एक दलाल ठहर गया | वह तो ऐसी मजबूर गरीब माँ की ताक में ही उस गली के चक्कर महीने, दो महीने में लगा लेता था | देहरी पर आकर बोला - "किसनी! क्यों न अमीर परिवार के हवाले कर दे तू इसको ? वहां खूब आराम से रहेगा | दो लोग हैं मेरी नज़र में, जो बच्चे की तलाश में हैं | तू कहे तो बात करूँ?"
“मेरा यही सहारा है, ये चला जायेगा तो मर ही जाऊँगी मैं तो |” ममता में तड़पकर किसनी ने सीने से चिपका लिया गुल्लू को !
दलाल के द्वारा खूब समझाने पर गुल्लू के भविष्य के खातिर आख़िरकार किसनी राजी हो गयी | पड़ोसनों के उकसाने पर शर्त भी रखी कि उस घर में वो लोग नौकरानी ही सही उसे जगह देंगे तब |
दलाल की कृपा से आज किसनी को भर पेट भोजन मिलने लगा था, तो छाती में दूध भी उतरने लगा | परन्तु अब गुल्लू को छाती से लगाने के लिए तरस जाती थी किसनी | गुल्लू कभी दूध की बोतल, कभी खिलौने लिए अपनी नयी माँ की गोद से ही चिपका रहता था|
“तेरे उजले भविष्य के खातिर ये भी सही, माँ हूँ न |” कहकर आँखों से बहती अविरल धारा को किसनी ने रोक लिया |
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http://www.rachanakar.org/2014/11/blog-post_294.html रचनाकार वेब पत्रिका में छपी हुई |

4 September 2014 नया लेखन ग्रुपमें लिखी हुई |
थोड़े चेंज के साथ



10 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर ।

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

बहुत बहुत शुक्रिया सुशील भैया आपका तहेदिल से

Kailash Sharma said...

एक माँ ही बच्चे के लिए कुछ भी कर सकती है...बहुत मर्मस्पर्शी कहानी..

विभा रानी श्रीवास्तव said...

सार्थक सुंदर कहानी

संजय भास्‍कर said...

आंचल में दूध आंख में पानी भरा है
सार्थक मर्मस्पर्शी कहानी....!!

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

कैलाश भैया आभार आपका दिल से ..._/\_

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

आभार विभा दी आपका दिल से ..._/\_

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

संजय भाई आभार आपका दिल से :) :)

Unknown said...

बहुत सुन्दर बहन मजबूर माँ और क्या करती.....नमस्कार बहन

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

बहुत बहुत आभार तनुज भैया _/\_