दूसरा भाग ---
कुछ चीजें नहीं लिखे, चित्र के जरिये बता रहे...असल में सब कथाओं का नाम क्यों लिखे ऐसा सोचने पर यह तरीका बेस्ट लगा हमें ..:)
लिखना था अतः पूरी हिम्मत बटोरी फिर पढ़ा हमने यह संग्रह। केदारनाथ "शब्द मसीहा" भैया का पहला लघुकथा संग्रह है | पूरे ९८ तरह के फूलों का तीखा-मनमोहक-सुगन्धित गुलदस्ता | दो तीन कथाएं पढ़ते ही मन्टो साहब (अभी हाल ही में ६-७ कथाएँ पढ़कर ही जिन्हें हमने जाना) की लिखी कथाओं का जायका लें सकते हैं |
पान भले आप दिल्ली में खाये या आगरा में या फिर लखनऊ में, लेकिन बनारसी पान सुनते ही बनारस का स्वाद-रस तन-मन में समाने लगता है, वही हाल किताब के शुरूआती कथाओं पढ़कर और कवर पेज को देखकर महसूस होगा, गारंटी |
फिर भटक रहे ! नहीं ! नहीं ! हम भटक कतई नहीं रहे, सीधे विषय पर ही हैं | पहली कथा "माँ हूँ" आपकी शांत पड़ी भावनाओं में उथल-पुथल मचा देगी फिर आप अगली फिर अगली कथा पढ़ते ही जायेंगे | यह देखने के लिए कि कौन सी कथा में कितना जहरीला-तीक्ष्ण तीर आपकी सोयी पड़ी अंतरात्मा को कितना अधिक भेदता है, जगाता है |
फिर भटक रहे ! नहीं ! नहीं ! हम भटक कतई नहीं रहे, सीधे विषय पर ही हैं | पहली कथा "माँ हूँ" आपकी शांत पड़ी भावनाओं में उथल-पुथल मचा देगी फिर आप अगली फिर अगली कथा पढ़ते ही जायेंगे | यह देखने के लिए कि कौन सी कथा में कितना जहरीला-तीक्ष्ण तीर आपकी सोयी पड़ी अंतरात्मा को कितना अधिक भेदता है, जगाता है |
शानदार लेखन शैली में समाज की विडंबनाओं, दीमक की तरह खोखला करते अन्धविश्वासों, और इंसानी जीवन को नर्क के द्वार तक ले जाते रूढ़ियां-मान्यताओं को उजागर किया गया है | बेहतरीन शिल्प ने कथाओं में चार चाँद लगा दिया है | अपने विचारों का कथा माध्यम से सम्प्रेषण इतनी सरलता से हुआ है कि बात पाठक तक आसानी से पहुँच जाती है |
''चुनाव आने वाले हैं'' नेताओं द्वारा दंगे कराने की कड़वी सच्चाई बयान करती है तो ''अदा'' के माध्यम से औरतों को मुफ्त में मिली उपलब्धियों पर तीर भी कसती है।
"बिना जड़ों के पेड़" अपने बच्चों के बिना चहक उठते हैं तो ''बच्चा'' में माँ का प्यार बेटे के प्रति दिखता है। अपने स्वार्थ के वशीभूत हो गिरता चरित्र में परिलक्षित होता है। ''नीच" में मानसिकता की नीचता दिखती है तो "ताजमहल" में बुजुर्गों और अपनी जड़ों से बेरुखी उजागर होती है।

"खून के आँसू" नाकामयाब रही संवेदना को जगाने में। हमें लगता है जो दर्द दिखाना चाहा वह सम्प्रेषित नहीं हुआ । अंत झटका देती है लेकिन बीच में बेटी को लाना सही नहीं लगा।
"बिना जड़ों के पेड़" अपने बच्चों के बिना चहक उठते हैं तो ''बच्चा'' में माँ का प्यार बेटे के प्रति दिखता है। अपने स्वार्थ के वशीभूत हो गिरता चरित्र में परिलक्षित होता है। ''नीच" में मानसिकता की नीचता दिखती है तो "ताजमहल" में बुजुर्गों और अपनी जड़ों से बेरुखी उजागर होती है।

"खून के आँसू" नाकामयाब रही संवेदना को जगाने में। हमें लगता है जो दर्द दिखाना चाहा वह सम्प्रेषित नहीं हुआ । अंत झटका देती है लेकिन बीच में बेटी को लाना सही नहीं लगा।
"एडिटर" हर तरफ नागफनियाँ हैं यदि साहित्यिक समाज की रत्ती भर भी यह सच्चाई है तो घिन आती है ऐसी कलम से और ऐसे कलम के मसीहों से। जिस कालखण्ड की लघुकथा में बात की जाती है उससे भी अछूती न रही यह।
अब पूरे पेड़ की बात करते हैं हम। अलग-अलग डालियों के चित्रण में लंबी कहानी लिख दी जाएगी मेरे द्वारा। और सबको पढ़ने में दिक्कत होगी। वैसे भी इतना बड़ा ही शायद कोई पढ़ना चाहे, शायद इस संग्रह के लेखक खुद भी ।
शायद पढ़ी जाय इस उम्मीद पर लिखे जा रहे। उम्मीद पर दुनिया कायम है। और अपनी उम्मीद जिन्दा रखने के लिए हम संक्षेप में सब कथाओ की बात करते हैं।
चुटीली भाषा शैली का उपयोग करते हुए आम जीवन से उठाये गये विषय हैं। बिल्कुल अपने ही आसपास से। जो एक आम इंसान देखकर छोड़ देता है लेकिन एक लेखक उस वाकयों को पकड़कर कलम के द्वारा शब्दों में बांध लेता है।

कुल मिलाकर हमारी नजर में तो लेखक भी एक शातिर चोर की तरह है, जो आपके नजरों के सामने ही किसी क्षण को चुराकर, उसमें शब्दों के औजारों द्वारा सेंध लगाता हुआ साहित्यिक सुरंग बना लेता है और जब पढ़ते समय आपको पता चलता है कि यह तो आपके साथ ही घटित हुआ था तो आप दाँतो तले ऊँगली दबाए बिन नहीं रह पाते हैं।

मसीहा भैया का कथा संग्रह पढ़ते हुए ऐसा ही लगा हमें, क्षण- क्षण की घटना की कथाएँ भरी हुई हैं उनके इस संग्रह में।
सबको पढ़कर लगा अपने ही पास बिखरें घटित घटनाओं के तीर तो हैं जो मसीहा भैया के धनुष पर चढ़ते ही सीधे हमारे दिल में जा लगें हैं।

शायद पढ़ी जाय इस उम्मीद पर लिखे जा रहे। उम्मीद पर दुनिया कायम है। और अपनी उम्मीद जिन्दा रखने के लिए हम संक्षेप में सब कथाओ की बात करते हैं।
चुटीली भाषा शैली का उपयोग करते हुए आम जीवन से उठाये गये विषय हैं। बिल्कुल अपने ही आसपास से। जो एक आम इंसान देखकर छोड़ देता है लेकिन एक लेखक उस वाकयों को पकड़कर कलम के द्वारा शब्दों में बांध लेता है।

कुल मिलाकर हमारी नजर में तो लेखक भी एक शातिर चोर की तरह है, जो आपके नजरों के सामने ही किसी क्षण को चुराकर, उसमें शब्दों के औजारों द्वारा सेंध लगाता हुआ साहित्यिक सुरंग बना लेता है और जब पढ़ते समय आपको पता चलता है कि यह तो आपके साथ ही घटित हुआ था तो आप दाँतो तले ऊँगली दबाए बिन नहीं रह पाते हैं।

मसीहा भैया का कथा संग्रह पढ़ते हुए ऐसा ही लगा हमें, क्षण- क्षण की घटना की कथाएँ भरी हुई हैं उनके इस संग्रह में।
सबको पढ़कर लगा अपने ही पास बिखरें घटित घटनाओं के तीर तो हैं जो मसीहा भैया के धनुष पर चढ़ते ही सीधे हमारे दिल में जा लगें हैं।

संग्रह पढ़ते हुए फेसबुक पर भी कथा और टिप्पणी पढ़ते रहें। जिसे पढ़कर यह बात समझ आयी कि कथा-कहानी अच्छी खराब नहीं होती, हमारे मन को भायी तो अच्छी और नहीं भायी तो खराब | माने हमारे विचार, मन, पसन्द के दायरे से कथानक बाहर की निकली तो पसन्द नहीं आती। लेकिन कथा-कहानी के नियम - शिल्प- शैली जानते हैं तो कथा के उसमें फिट बैठने पर बिन मन के भी कहना पड़ता कि अच्छी है।
सविता मिश्रा 'अक्षजा'

लघुकथा संग्रह--"ज़िन्दा है मन्टो"
सविता मिश्रा 'अक्षजा'

लघुकथा संग्रह--"ज़िन्दा है मन्टो"
लेखक-- केदारनाथ "शब्द मसीहा"
प्रकाशक-- के. बी. एस. प्रकाशन, नयी दिल्ली
मूल्य---- 300 रु (जो की हमें ज्यादा लग रहा, पाठक की पहुँच में रहनी चाहिए)
संपर्क-- मकान न. 46-ए, अनारकली गार्डन, जगत पुरी
नजदीक शिव साई हनुमान मंदिर
दिल्ली -- 110051
मोबाईल -- 9810989904
ईमेल -- kedarnath151967@gmail.com
प्रकाशक-- के. बी. एस. प्रकाशन, नयी दिल्ली
मूल्य---- 300 रु (जो की हमें ज्यादा लग रहा, पाठक की पहुँच में रहनी चाहिए)
संपर्क-- मकान न. 46-ए, अनारकली गार्डन, जगत पुरी
नजदीक शिव साई हनुमान मंदिर
दिल्ली -- 110051
मोबाईल -- 9810989904
ईमेल -- kedarnath151967@gmail.com
No comments:
Post a Comment