Monday 25 December 2017

४ ) "लघुकथा अनवरत" साझा-लघुकथा-संग्रह (२०१७)

'लघुकथा अनवरत' दूसरा सत्र २०१७ साझा-लघुकथा-संग्रह- "अयन प्रकाशन"
सम्पादक द्वय ..श्री सुकेश साहनी और श्री रामेश्वर काम्बोज |
विमोचन- दिल्ली के पुस्तक मेले में जनवरी २०१७ में |
प्रकाशित तीन लघुकथाएँ .
१...जीवन की पाठशाला
2...सच्ची सुहागन
३..ब्रेकिंग न्यूज |
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१..जीवन की पाठशाला आगरा से लखनऊ का छ-सात घंटे का सफ़र। ट्रेन खचाखच भरी हुई थी पर भला हो उस दलाल का, जिसने सौ रूपये ज्यादा लेकर सीट कन्फर्म करा दी थी वरना सिविल सेवा परीक्षा देने जाना बड़ा भारी लग रहा था। दोनों ही सहेलियों ने गेट से लगी सीट पर धम्म से बैठ कब्ज़ा जमा लिया था।
सामने फर्श पर सामान्य कद-काठी का शरीरधारी, किसी दूसरे ग्रह का प्राणी लग रहा था। मैला-कुचैला सा कम्बल अपने शरीर के चारो तरफ लपेटे बैठा था। रह-रहकर सुमी उसे हिकारत भरी नजर से देख लेती और नाक-भौंह सिकोड़ते हुए अपनी सहेली तनु के साथ चर्चा में तल्लीन हो जाती। बात रसोई से शुरू हो, राजनीति तक जा पहुँची थी। अब तो दोनों सहेली एक दूजे पर कटाक्ष रूपी तीर छोड़ रही थीं। कभी तनु कटाक्ष से घायल, कभी सुमी तनु के मुख से निकली आग से रुई-सी हुई जा रही थी। तभी दोनों की चर्चा के बीच में एक तल्ख़ आवाज गूँजी- "ये राजनीति के बन्दे किसी के कभी हुए, जो अब होंगे। आपस का प्रेम ऐसे क्यों किसी ऐसे के लिए गवाँ रही हो, जो 'पानी में दिखता चाँद' सरीखा है। न वो शीतलता दे सकता है, न रोशनी और न ही पकड़ में आएगा।" दोनों अवाक-सी, दीनहीन से उस व्यक्ति को देखती रह गईं। सुमी यह सोच हतप्रभ थी कि सामान्य से दिखने वाले लोग भी दार्शनिक सोच रखते हैं। अब सफ़र का बचाखुचा समय, चुप्पी साध, मुग्ध सी, सिर्फ सुन रही थीं दोनों। चार घंटे से चुपचाप बैठे व्यक्ति ने जब मुँह खोला, तो चुप कहाँ हुआ। एक से बढ़कर एक फिलासफी भरी उसकी बातें। एकाएक सुमी ने पूछा- "बाबा, पढ़े कितना हो?" "पाठशाला में तो न गया, पर जीवन की पाठशाला बखूबी पढ़ी है।" सुमी और तनु के बैग में रखी डिग्रियाँ, अब जैसे उन्हें ही मुँह चिढ़ा रही थीं। ---००--- November 21, 2015 ..obo में पोस्ट
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2...सच्ची सुहागन 
पूरे दिन घर में आवागमन लगा था। दरवाज़ा खोलते, बंद करते, श्यामू परेशान हो गया था। घर की गहमागहमी से वह इतना तो समझ चुका था कि बहूरानी का उपवास है। सारे घर के लोग उनकी तीमारदारी में लगे थे। माँजी के द्वारा लाई गई साड़ी बहूरानी को पसंद न आई थी, वो नाराज़ थीं। अतः माँजी सरगी की तैयारी के लिए श्यामू को ही बार-बार आवाज दे रही थीं। सारी सामग्री उन्हें देने के बाद, वह घर के सभी सदस्यों को खाना खिलाने लगा। सभी काम से फुर्सत हो, माँजी से कह अपने घर की ओर चल पड़ा।
बाज़ार की रौनक देख अपनी जेब टटोली, महज दो सौ रूपये । सरगी के लिए ही ५० रूपये तो खर्च करने पड़ेंगे। आखिर त्योहार पर, फल इतने महँगे जो हो जाते हैं। मन को समझा, उसने सरगी के लिए आधा दर्जन केले खरीद ही लिए। वह भी अपनी दुल्हन को सुहागन रूप में सजी-धजी देखना चाहता था, अतः सौ रूपये की साड़ी और 
शृंगार सामग्री भी ले ली।

सौ रूपये की लाल साड़ी को देख सोचने लगा, मेरी पत्नी तो इसमें ही खुश हो जायेगी। उसकी धोती में बहत्तर तो छेद हो गए हैं। अब कोठी वालों की तरह न सही, पर दो-चार साल में तन ढ़कने का एक कपड़ा तो दिला ही सकता हूँ। बहूरानी की तरह मुँह थोड़े फुलाएगी। कैसे माँजी की दी हुई साड़ी पर बहूरानी नाक-भौंह सिकोड़ रही थीं। छोटे मालिक के साथ बाजार जाकर, दूसरी साड़ी ले ही आईं।
मन में गुनते हुए ख़ुशी-ख़ुशी सब कुछ लेकर घर पहुँचा। अपने छोटे साहब की तरह ही, वह भी अपनी पत्नी की आँख बंद करते हुए बोला- "सोच-सोच क्या लाया हूँ मैं?"
"बड़े खुश लग रहे हो। लगता है कल के लिए, बच्चों को भरपेट खाने को कुछ लाए हो! आज तो भूखे पेट ही सो गए दोनों।"
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३...ब्रेकिंग न्यूज़ 

मेरी गुड़िया
, मेरी बच्ची, कह-कह शर्माइन बेहोश हुई जा रही थीं।
विधायक शर्मा जी फोन-पर-फोन किए जा रहे थे, पर अभी तक कुछ पता नहीं चला था।
ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम से घर-घर न्यूज़ दिख रही थी कि कद्दावर नेता की कुतिया किसी दुश्मन ने की गायब।
"कुतिया नहीं कहो, वर्ना चढ़ बैठेंगे।" किसी ने फुसफुसाकर कहा।
"विधायक की गुड़िया को किसी ने किया गायब।" सँभलते हुए पत्रकार बोला।
"कई टीमें हुई रवाना, खुद विधायक एक टीम को लीड कर रहे हैं।"
तभी कैमरे के सामने एक लाचार बुड्ढा आ गया।
"अरे बुड्ढे, कहाँ बीच में घुसे आ रहे हो।" धक्का मारते हुए पत्रकार बोला।
"बेटा, मेरी भी सोलह साल की गुड़िया खो गई है। उसे भी खोजने में मदद कर दो।"
"अब्बे बुड्ढा, जाके खोज, होगी कहीं मुँह काला कर रही। देख नहीं रहा, हम ब्रेकिंग न्यूज़ चला रहे।"
"बेटा ऐसा न कहो , मुझे शक है विधायक साहब ने ही गायब किया है। वह इन्हीं के यहाँ काम करती थी।महीने से यहीं भूखा-प्यासा बैठा हूँ, पर कोई नहीं सुन रहा।"
तुरंत फिर ब्रेकिंग न्यूज़ तैयार - 'कामवाली ने किया विधायक की 'गुड़िया' का अपहरण' अभी फ़रार बताई जा रही है। जल्दी ही खोज निकाला जायेगा उसे।
कैमरामैन बूढ़े को एक कुर्सी पर बैठा, पानी-समोसा आफ़र कर, मुस्कराते हुए बोला- "बाबा चिंता ना करो। विधायक की कुतिया यानी 'गुड़िया' की खोज में, तुम्हारी गुड़िया मिल ही जाएगी अब।"
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1/2/2015--ओबीओ में लिखा
यह यहाँ लघुकथा.कॉम वेबसाइट पर भी स्थान पा चुकी है...
http://laghukatha.com/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87…/

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