Tuesday 18 December 2012

जिद्दी मन



जिद थी अपनी कि
जिद छोड़ देंगे,
जिद्दी मन को अपने मोड़ देंगे|
पर यह हों
ना सका कभी ,
जिद से ही
"जिद" कर बैठी|
खुद को
बदलते-बदलते,

अपना ही
वजूद खो बैठी |
अब जिद है
कि "जिद"को,
अपने अंदर
कैद कर लूँ |
जिद से ही
"जिद"को
भूल जाऊ,
पर "जिद" है
जिद्दी बहुत ही
कैसे भुलाऊँ| |

||सविता मिश्रा ||

2 comments:

Anonymous said...

बहुत ही अच्छा =================

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

dhanyvaad apka