Saturday, 2 March 2013

~~सपना सुहाना~~

गले लगा के उन्होंने हमसे बोला
क्यों रह रहकर तुम बन जाती हो शोला|

उनकी इस बात पर हम आवक रह गए
आंसू हमारी आँखों से अपने आप ही बह गए|

बड़े प्यार से आंसुओं को उन्होंने पोछा
बांसुरी बजा के हमको प्यार से रोका|

हम तब गले लग उनसे बिफर से गए
बड़ी मुश्किल से फिर खुद को संभाल लिए|

उन्होंने बोला बताओं सच में क्या हुआ
हम सुनाना शुरू किये तो फिर रुके कहा|


धैर्य रख वह हमारी हर बात सुनतें रहें
फिर बड़े सहजता से बोले अब सब दुःख तुमसे दूर हुए|

जा अब तू ना कभी रोएगी
तेरा होगा अब से मंगल ही मंगल|

हमारी याद में जब जब खोएगी
तुझे हम तुरंत आ तब तब देगें दर्शन|

हम बड़े खुश हो उछल ही पड़े
पर यह क्या बिस्तर से जमीं पर गिरे|

यह तो महज एक था सपना सुहाना
बुदबुदाये हम कि सविता तू औकात में रहना|

+मिलने वाला कहा है असलियत में भगवान्
क्योकि तू अभी तो सही से बनी नहीं इंसान||..
सविता मिश्रा

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