नफ़रत की अविरल धारा में प्यार का पानी बरसेकुछ ऐसी ही कल्पना होती है मन में ... पर नफ़रत सदा प्यार को तरसे| नफ़रत हो ना कभी सदा प्यार ही प्यार रहें पर होगा क्या ऐसा कभी जब तक घृणा किसी से रहें | प्यार का बादल घिर जाएँ घृणा की बदबू तक ना आएँ नफ़रत बिजली की तरह मिट्टी में मिल जाएँ | बस प्यार भरी ... सावन की घटा छाएँ प्यार का संगम दिखे हर दिल में , नफरत के पोखर सुख जाएँ कुछ ऐसी ही कल्पना होती है मन में|| 2/1990 ||सविता मिश्रा || |
किसी के दिल को छू जाए ऐसा कोई भाव लिखने की चाहत ..कोई कवियत्री नहीं हैं हम | अपने भावों को शब्दों का अमलीजामा पहनाते हैं बस .:)
Saturday, 30 March 2013
==कल्पना होती हैं मन में ==
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1 comment:
SUNDAR .....
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