Saturday, 30 March 2013

====प्यारा सा गाँव ====


शहरो की ख़ाक-छान,
जेठ की धुप में,
बैठे थे हम ,
भिखमंगे के रूप में |


प्यारा सा गाँव छोड़,
रिश्तों से नाता तोड़,
शहर की ओर रुख मोड़,
सड़कों से नाता जोड़ |


सड़कों पर भटक-भटक,
सह अषाढ़ की धुप कड़क,
गाँव की छोड़ सोधी महक,
खो गये शहरों की तड़क-भड़क|


पैरों पर पड़ गये छाले,
हो गये रोटी के भी लाले,
हुआ यूँ कमाल,
कि गावँ छोड़े बीते कई साल |


इतने सालों बाद,
आयी फिर गाँव की याद,
सुन लों मेरी फ़रियाद,
कोई फिर कभी ना मांगना ऐसी मुराद ||......सविता मिश्रा



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