Thursday 29 August 2013

जुदाई मेरी-

जुदाई मेरी तू सह न सकेगा कभी भी सनम
अहम को अपने इतना तवज्जो दिया न कर |
करता है बहुत प्यार तहेदिल से तू मुझे
यह बात तू कभी इकरार कर या न कर |
खोया रहता हर वक्त तू मेरी ही यादों में
इस बात का तू कभी इजहार कर या न कर |
याद में मेरे छलक आते हैं नैनों से अश्क तेरे
यह बात मान या मानने से तू इनकार कर |
लेने आगोश में मुझे तड़पता है दिल-ए-नादान तेरा
यूँ दिल को तू अपने हर वक्त बेकरार किया न कर |
बगैर मेरे रह न सकेगा, जुदाई मेरी सह न सकेगा ...
देके एक आवाज तू देख दौड़ी चली आऊँगी
अपने अहम का तू खुद को शिकार न कर |
गलती न थी मेरी आऊँगी फिर भी पास तेरे
बस एक बार तू इशारा देके तो देखा कर |
बगैर मेरे कभी भी रह न पायेगा कहीं
स्वयं पर सनम यूँ गुमान किया न कर |
बगैर मेरे रह न सकेगा, जुदाई मेरी सह न सकेगा
अहम को अपने इतना ज्यादा तवज्जो दिया न कर ..|
---०००---
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
१/२०१३ शायद ..किसी की पोस्ट पर लिखा था


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