++ज्यादा की चाह ++
किस्मत में खूब मेरे लिखा फिर भी
ज्यादा की हमेशा ही चाह रही
तुझे देख कर आह भरू मैं
खुद की सोच पर करूँ अफ़सोस
तेरे देख हालात क्यों आँखे मेरी
गयी डबडबा दिल क्यों आया भर
देखकर पड़ा थाल में भोजन
याद तेरी ही हमको हो आई|
नहीं छोड़ती थी भोजन पर
एक एक दाना चुग अब जाती हूँ
ना जाने क्यों मन मस्तिष्क में
तस्वीर उभर तेरी ही आती है|
बड़ी किस्मत से है मिला सोचती हूँ
क्यों मैं बर्बाद कर जाती हूँ
क्या पता किस जन्म में तेरे जैसे ही
भूखे पेट ही मैं भी कितने दिन सोयी हूँ|
मिली कभी जब एक रोटी हो तो
बाँट कई हिस्से में उसे भी खायी हूँ
शायद वही पुन्य कर्म हो जो
खा रही हूँ इस जन्म में रोटी भरपेट |
सब लेना सीख जरा करना मत बर्बाद
बड़ी मुश्किल से मिला हैं भोजन तुमको आज|| सविता मिश्रा
3 comments:
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
सच है ... अन्न को बरबाद करना ईश्वर का अपमान है ...
एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
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