Saturday, 19 October 2013

### उठो जागो ###


उठो जागो
क्यों खोयी हो
खुद में !

कभी अपना परिवार
कभी अपने बच्चे
कभी बस अपना पति
कभी अपना घर
कभी सौन्दर्य-गृह में
कर श्रृंगार
निखारती रहती
सौन्दर्य को ही !
जागो!
झांको अन्दर अपने
तुमसे ज्यादा खूबसूरत
कोई भी तो नहीं!

कभी किटी पार्टी
कभी रहती हो
करती काना-फूसी
क्यों करती हो बर्बाद समय
समय रहते जागो!

उठो !
बाहर निकलो
बदल डालो सब
तुममें शक्ति हैं
तुम दुर्गा हो!
पहचानों अपने आप को
निकलो लेकर मशाल
फैला दो अपनी रोशनी!
घर ही संवारना
काम नहीं हैं तुम्हारा
अपने देश को
अपनी मातृभूमि को
समाज एवं परिवार को भी
अलंकृत करने का
बीड़ा उठाओ !

तुम कर सकती हो
बस एक बार
अपने मन में
ठानकर तो देखो !!..सविता मिश्रा

5 comments:

संतोष पाण्डेय said...

बिलकुल सही। महिलाएं अपनी शक्ति पहचान लें और ठान लें तो दुनिया बदल सकती है।

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

धन्यवाद

संजय भास्‍कर said...

महिलाएं अपनी शक्ति पहचान लें

संजय भास्‍कर said...

अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

संजय भास्‍कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

सविता मिश्रा 'अक्षजा' said...

धन्यवाद संजय भाई आपका