Monday, 14 October 2013

++जलता रावण ++

~~जलता रावण ~~

रावण सपरिवार धू-धू कर
जल रहा था
पैसों की बर्बादी देख कर
हमें दुःख बहुत हो रहा था !!

अगल-बगल देखा तो
रावण ही रावण बिखरे थे
सब दुष्ट रावण से निखरे थे
कुटिल चेहरों पर कुटिल मुस्कानें
आँखों में मक्कारी के क़तरे बिखरे थे।

हमने झट प्रभु को याद किया ,
हे राम!
सतयुगी रावण का किया संहार
आओ, फिर कलयुग में कर दो
इन सभी पापियों का उद्धार !

आँख बंद कर
कर ही रहे थे विनती
एक चिंगारी हम पर आ गिरी
लगा हम ही जलने लगेंगे
जलकर भस्म हो जाएंगे।

पति डाँटकर देने लगे नसीहतें
जब चिंगारी चिटकी
क्या तुम तब सो रही थी
जब आग थीं इतनी भड़की
तुम क्यों नहीं पीछे को सरकी।

.जैसे-तैसे राम जाने कैसे
जान बची तो फिर हमने
प्रभु को किया याद घबड़ाकर
और पूछा कि मेरे साथ
आपने क्यों किया ऐसा ?

प्रभु मंद-मंद मुस्काए
फिर बोले
रे मूरख !
तूने ही तो कहा था
आस-पास बिखरे
कलयुगी रावण का उद्धार करो
तो सबसे पास तो तू ही थी
तुझसे ही शुरुआत किया
अब बोल तू चाहती हैं क्या ?
उद्धार करूँ या छोडूँ !!

हम स्तब्ध रहे खड़े
अपने ही गिरेबान झाँक
बहुत ही हुए शर्मिंदा
प्रभु करो तुम अब क्षमा
छोड़ ही दो
थे हम अज्ञानी
नहीं देखेंगे अब से
दूसरों के दोष
अपने में से ही ढूढ़
पहले समाप्त करेंगे!!

प्रभु भी थे मेरे बड़े दयालु
झटपट मान गये
आगे से मत कहना हम से
साथ ही यह भी समझा गये!

तब से जैसा चल रहा है वह चलने दे रहे हैं
रावण को जलता देख हम भी खुश हो रहे हैं|
सविता मिश्रा

आप सभी को दशहरा की हार्दिक शुभ कामनायें  .......:)

2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... प्रभू जानते हैं सबके मन के रावण को ... अच्छा व्यंग ...

संतोष पाण्डेय said...

क्या बात है. वर्षों पहले पढ़ी गई पंक्तियाँ याद आ गईं।
जो दिल खोजू आपना मुझसे बुरा न कोय।