Friday 8 August 2014

~प्यासी धरती माँ ~

सुमी पानी का गागर दूर पोखर से भर ला रही थी, उसकी छोटी बहन चिक्की भी उसके साथ थी उसे गर्मी में नंगे पैर चलने के कारण पैरो में जलन हो रही थी और गला-ओंठ भी प्यास से सूखे जा रहे थे| पैरों से जमीं की और सर पर धूप की तपिश उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी|
प्यास तो सुमी को भी लगी थी, पर वह थोड़ी बड़ी थी, सहने की आदत पड़ गयी थी उसे|
चिक्की चिल्लाई..." दीदी बहुत जोरो से प्यास लगी है, पानी भरी भी हो, फिर भी ना पी रही हो ना पिला रही हो|" "अरे छुटकी तू समझती क्यों नहीं ऐसे पानी गागर से पियेगें तो बहुत सा पानी बर्बाद हो जायेगा" सुमी चिक्की को समझाने के अंदाज में बोली|
"अरे दीदी बर्बाद क्यों होगा, एक तो हमारी प्यास बुझेगी, दूजे इस सूखी-फटी धरा को भी पानी मिल जायेगा, देखो मुहं बाए पानी मांग रही है| जब हम अपनी माँ के लिय इत्ती दूर से पानी भर ला सकतें है, तो अपनी धरती माता को  खुद ही को लाभ पहुँचाने के लिय जरा सा पानी नहीं दे सकते है?" चिक्की सायानी बन बोली|
सुमी बोली ..."अरे छुटकी तू कह तो सही रही है और यह सुखा खेत तालाब के पास भी है, चल-चल दो चार गागर रोज यहाँ भी डालेगें आखिर मेरी धरती माँ क्यों प्यासी रहें भला" ...दोनों ही चल पड़ती है एक नये संकल्प के साथ.....| ...सविता मिश्रा

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