१..मेघ हुआ बंजारा
रुक तनिक ठहर जा
बरस हम पर जरा सा
२..कुछ मेरी जुबा सुनो
कुछ कहते खुद की|
कह सुन फिर उसे गुनों|
३..मेघ घिरे जो काले
हो मन मतवाला
वर्षा के संग झूमें|
४..मन की पीड़ा तेरे
सारी हर लूंगी
मुस्करा पिया मेरे|
५..पयोधर की ये घड़ी
झिर-झिर लगी झड़ी
बदरा से धरा लड़ी|
६..बैठ गोद में मेरे
आँचल में लु छुपा
अब तू आँख तरेरे|
७..हँसनें की नहीं घड़ी
सड़क पर जो गिरी
मदद करने को बढ़ी|
८ ..सुख लिखना चाह रही
दु:ख लिख जाता हैं
खुद को फूसला रही| ++ सविता मिश्रा ++
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