Friday 15 August 2014

"माहिया"


१..मेघ हुआ बंजारा
रुक तनिक ठहर जा
बरस हम पर जरा सा

२..कुछ मेरी जुबा सुनो
कुछ कहते खुद की|
कह सुन फिर उसे गुनों|

३..मेघ घिरे जो काले
हो मन मतवाला
वर्षा के संग झूमें|

४..मन की पीड़ा तेरे

सारी हर लूंगी
मुस्करा पिया मेरे|

५..पयोधर की ये घड़ी
झिर-झिर लगी झड़ी
बदरा से धरा लड़ी|

६..बैठ गोद में मेरे
आँचल में लु छुपा
अब तू आँख तरेरे|

७..हँसनें की नहीं घड़ी

सड़क पर जो गिरी
मदद करने को बढ़ी|


८ ..सुख लिखना चाह रही
दु:ख लिख जाता हैं
खुद को फूसला रही|
++ सविता मिश्रा ++

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