Friday 8 August 2014

प्रकृति संपदा (कहानी )

माँ अपनी दोनो बच्चियों को पानी भरने में लगा देती| गरीबी के कारण स्कूल तो जाती नहीं थी दोनो |  खुद घर का और काम निपटाने में लग जाती| गाँव से दूर एक नहर थी, वहां से बड़ी बिटिया निक्की गगरा में पानी भर कर लाती| ज्यादा बड़ी ना थी, पर अपनी उम्र और जान से दुगुना काम कर लेती थी | छुटकी उसकी संगत के कारण जाती और वहां नहर में खूब  मौज  भी करने को मिल जाता | अतः खुशीखुशी बड़ी  बहन के साथ हो लेती | दोनो नहर में घंटो मस्ती करते, फिर गगरा में पानी भर घर आ जाते| दिन में कई चक्कर लगाते और हर बार पानी देख बेकाबू हो कूद पड़ती छुटकी | नहर में मस्ती करने  में  बड़ा  मन लगता |  साँझ ढ़लने तक पानी ही भरती रहती  दोनो |  घर आते ही डांट खाती  तो खिलखिला हंस पड़ती | मस्ती में काम भी खूब कर लेती  दोनो, अतः माँ को ज्यादा शिकायत ना होती|

एक दिन गाँव में सुखा ग्रस्त इलाके में दौरा करने वाली टीम आई, उसने गाँव वालो को समझाया- "आप लोगो के परदादा ने पेड़ लगाया, आप अब तक फायदा लेते आये | फिर अब आप सब भी क्यों नहीं लगाते पेड़? आपके पास तो इतनी जमीने खाली पड़ी है? बहुत सी जमीने तो खेती लायक भी नहीं है | उसी जमींन पर आप मेहनत कर पेड़ उगाये, देखिये साल दो साल में ही आप धनवान हो जायेगे| .प्रकृति संपदा से बढ़ कर भी कुछ है क्या?"

निक्की बड़े ध्यान से बात सुन रही थी, दुसरे दिन जब वह नहर पर पानी लेने गयी तो वहाँ  नीम के कई पौधे उगे हुए थे | कुछ पौधे वह उखाड़ कर छुटकी को पकड़ा दी | बोली "ले छुटकी पकड़ और हा संभल कर पकड़ना | ज्यादा कस कर मुट्ठी ना बाँध लेना |"
"पौधे मर जायेगे न" छुटकी बड़ी गंभीरता से बोली|
"हाँ निक्की दीदी, मैंने भी सुना था, वो चच्चा कहें थे कि पौधे बहुत नाजुक होते है|"
घर आते ही निक्की बोली  "बाबा देखो मैं क्या लायी ? इसे लगाना है अपने घर के पास" और खुरपी ले चल पड़ी! पहले तो रामसुख झल्लाया, पर फिर खुद ही लग गया गड्ढा खोदने|
दस दिन में ही घर के आस पास आठ-दस पेड़ लगा दिए| समय के साथ पेड़ थोड़े बड़े हो गये| एक दिन पास में निक्की खड़ी हो चिल्लाई "बाबा , अम्मा, देखो-देखो यह तो हमसे भी बड़ा हो गया"| उसको बढ़ता देख पूरा परिवार खुश और आश्वस्त था कि मेरे बच्चे सूखे की मार नहीं झेलेंगे|
उसकी देखा-देखी अब पूरा गाँव मिलकर बंजर भूमि पर मेहनत कर आम, इमली, महुवा केढेरों पेड़ लगा दिए | अब तो उनकी देख रेख में पेड़ लहलाहा रहे थे| ...सविता मिश्रा

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