अस्त्र
अपनी कामवाली के बच्चे को सड़क पर लोटते देख शीला ठहर गई | बगल ही खड़ी माँ से कारण पूछा ! पता चला कि बच्चा दीपावली पर पटाखे लेने को मचल रहा था |
उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह पूजा के लिए लक्ष्मी-गणेश, बताशे लेने के बाद उसे पटाखे भी दिला सकती | जिद्द में आकर बच्चा रोता हुआ लोट रहा था |
शीला ने अपने बेटे के लिए खरीदें पटाखों में से कुछ पटाखे उसे दे दिए | पटाखा हाथ में आते ही वह खुश हो गया |
"मम्मी ! मेरे पटाखे आपने इसे दे दिया अब इसका डबल करके मुझे दिलवाइए |
शीला उसे समझाते हुए पटाखों की खामियाँ गिनाती रही | लेकिन वह कहाँ मानने वाला था |
अचानक कामवाली का बच्चा आँखों का पानी पोंछते हुए बोल उठा- "तुम भी लोट जाओ यहाँ, फिर तुम्हारी मम्मी तुम्हें, झट से और पटाखे दिला देगी |"
--०--
उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह पूजा के लिए लक्ष्मी-गणेश, बताशे लेने के बाद उसे पटाखे भी दिला सकती | जिद्द में आकर बच्चा रोता हुआ लोट रहा था |
शीला ने अपने बेटे के लिए खरीदें पटाखों में से कुछ पटाखे उसे दे दिए | पटाखा हाथ में आते ही वह खुश हो गया |
"मम्मी ! मेरे पटाखे आपने इसे दे दिया अब इसका डबल करके मुझे दिलवाइए |
शीला उसे समझाते हुए पटाखों की खामियाँ गिनाती रही | लेकिन वह कहाँ मानने वाला था |
अचानक कामवाली का बच्चा आँखों का पानी पोंछते हुए बोल उठा- "तुम भी लोट जाओ यहाँ, फिर तुम्हारी मम्मी तुम्हें, झट से और पटाखे दिला देगी |"
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4 comments:
सुंदर ।
गहरा भाव छुपा है इस मासूम सी कहानी में ...
स्नेहाशीष .... असीम शुभकामनायें ....
बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले
नयी पोस्ट@श्री रामदरश मिश्र जी की एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी
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