Saturday 25 October 2014

~ सुखद क्षण ~(अस्त्र)

अस्त्र
अपनी कामवाली के बच्चे को सड़क पर लोटते देख शीला ठहर गई | बगल ही खड़ी माँ से कारण पूछा ! पता चला कि बच्चा दीपावली पर पटाखे लेने को मचल रहा था |
उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह पूजा के लिए लक्ष्मी-गणेश, बताशे लेने के बाद उसे पटाखे भी दिला सकती | जिद्द में आकर बच्चा रोता हुआ लोट रहा था |
शीला ने अपने बेटे के लिए खरीदें पटाखों में से कुछ पटाखे उसे दे दिए | पटाखा हाथ में आते ही वह खुश हो गया |
"मम्मी ! मेरे पटाखे आपने इसे दे दिया अब इसका डबल करके मुझे दिलवाइए |
शीला उसे समझाते हुए पटाखों की खामियाँ गिनाती रही | लेकिन वह कहाँ मानने वाला था |
अचानक कामवाली का बच्चा आँखों का पानी पोंछते हुए बोल उठा- "तुम भी लोट जाओ यहाँ, फिर तुम्हारी मम्मी तुम्हें, झट से और पटाखे दिला देगी |"
--०--
25 October 2014 को लिखी 

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर ।

दिगम्बर नासवा said...

गहरा भाव छुपा है इस मासूम सी कहानी में ...

विभा रानी श्रीवास्तव said...

स्नेहाशीष .... असीम शुभकामनायें ....

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले

नयी पोस्ट@श्री रामदरश मिश्र जी की एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी